SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 362
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री रथने मिनी कथा. मलने विषे चरणकमलने मूकता तथा देवेंशेए “हुँ पेलो हुँ पेलो," एवा आग्रहथी आगल तथा पागल सेवन करेला प्रन्नुपूर्वधारे प्रश्ने समवसरणमांआव्या, त्यांतेत्रण प्रदक्षिणा करी तथा तीर्थपतिने नमस्कार करी सिंहासन नपर वेग.ते वखते आश्चर्यकारी रीतेप्रन्नुनुं मुख्य रूप पूर्व दिशा तरफ अने बीजा त्रण अहश्य रूपबीजी दिशामांप्रनुना प्रन्नावधी आश्चर्यकारीपणे शोलतांहता.परीरेवताचलना नद्यानपालके तुरत धारकामांधावीने प्रन्नुने केवलज्ञान नत्पन्नथयानी वधामणीकृष्णने आपी.कृष्ण वधामणीमांतेने सामाबार क्रोम रुपाम्होरापी. योग्यज. बीजानने तुष्टिदान प्रापवामांकृष्णनी रीत एवीज. पठी कृष्ण, बलन्ननी,दशा)नी, बीजा हजारो राजाननी अने कोटिकुमारोनी साये समवसरण प्रत्ये गया. त्यांकृष्णादि ते सर्वे, जगत्गुरुने प्रणाम करीने पोतपोताना योग्य आसने बेग. पठी श्री नेमिनाथ प्रन्नुए एवी रीते धर्मदेशना आपी के, जेयी अनेक नव्यजनो धर्मकार्यमां तत्पर अया. वली तेनमां वरदत्त नूपतिये तो बहु वैराग्यने लीधे बीजा अनेक राजान सहित श्री जिनेश्वर पासे दीक्षा सीधी. नग्रसेनादि दाशाहोंए तथा बीजा नूपतियोए श्रावकधर्म आदस्यो अने कृष्ण विगेरे आदरथी समकित पालवा लाग्या. राजपुत्री दक्षिणाये बीजी बहु स्त्रीयो सहित निर्मल लावधी श्री तीर्थकर प्रन्नु पासे चारित्र लीधुं. अदीन / वाणिवाला अने शुइ आत्मावाला वरदत्त मुनीश्वरे दश साधुन सहित प्रन्नुनां मुखकमलथी त्रिपदीने पामी बहु अर्थवाली झादशांगी रची. पी वरदत्तनी विनंती नपरथी प्रन्नुए ते हादशांगीने शुक्ष मानीने सूत्र तथा अर्थथी शुक्ष एवी ते झादशांगीने प्रमाण करी. पी देवेंशेए करेला महोत्सवपूर्वक मनुए वरदत्तादि अग्यार मुनीश्वरोने गणधर पछी पी.त्यारवाद अवसर मलवायी कृष्णे, त्रण जगत्ना गुरु एवाश्री नेमिनाथ प्रनुने पूज्युं के, “हे प्रनो! राजीमती तमारे विषे बहु राग शा माटे धारण करे ?" पग प्रन्नुए धन अने धनवतीथी आरंजीने पोताना पूर्वना आठ नवनुं वृत्तांत कहीने कृष्णनो सं. देह दूर कस्यो. पठी चार प्रकारना संघनी स्थापना करी धर्ममय जलवृष्टि करता उता जिनेश्वर प्रन्नु बीजा देशमा विहार करवा लाग्या, केटला वर्षों सुधी पृथ्वी नपर विहार करीने फरी प्रन्नु देवतानए परवस्वा उता फरी हारका नगरी प्रत्ये आव्या. प्रजुनु आगमन सांजली कृष्ण
SR No.010819
Book TitleRushimandal Vrutti Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShubhvarddhansuri, Harishankar Kalidas Shastri
PublisherJain Vidyashala Ahmedabad
Publication Year1901
Total Pages487
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy