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________________ ( २८२ ऋषिमंगलवृत्ति - पूर्वार्ध. हवे श्रम श्री जिनेश्वरोनुं शरण यान, सिद्ध, साधु अने केवली प्रणित धर्म पण अमारा शरणरूप थान. वली या नवने विषे अमने चार प्रकारना आहारना त्यागरूप अनशन व्रत पण हो. सर्व प्रकारना प्राणीयोना हितकर्ता, राग द्वेषादिको संग त्यजी देनारा अने सर्व जगत्ना मित्र श्री नेमिनाथ प्रभु अमारा शरण थान. " आ प्रमाणे परमेष्टी मंत्रना ध्यानमां तत्पर श्रयेला ते त्रजणा (देवकी रोहिणी ने वसुदेव) हैपायन देवे प्रगट करेला जस्मीभूत थइ पुण्यने सीधे स्वर्गमां गया. आवी रीते सर्वे नगरवासी जनो जस्मीनूत था. कृष्ण बलन पण निश्वे जस्मीभूत थती पोतानी समग्र नगरीने जोता बता बहारना जीर्णोद्यानने विषे गया . त्यां बलता सुवर्णना किल्ला ने महेलोना थता खडखडाट शब्दोथी, नस्मरूप यता मनुष्योना तिर्यंचोना कोलाहलथी तथा अमिनी ज्वालाना तीखारामां पकता प की योना शब्दोथी कोन पामेला कृष्णे दीन वचनथी पोताना नाइ बलनने कह्युं. “हे बंधो ! हुं म्हारी पोतानी दृष्टिथी या नगरीना दाहने जोइ शकतो नथी, तो हवे क्यां जानं ? कारण के, राजाननुं महा पराक्रमवंत सर्व मंगल यापणाश्री विरुद्ध वे.” वलन कयुं. " हवणां आपने श्रेष्ठ बुद्धिवाला अने संबंधि एवा पांगवानी नगरी प्रत्ये जनुं योग्य बे; पण बीजा कोई दुश्मनने घरे जवुं योग्य नथी.” कृष्णे कह्युं. " ठीक बे, पण पूर्वे में महा क्रोधथी अने ही ते पांगवाने वहु पीमा आपी बे; तेथी हवणां तेमनी नगरी प्रत्ये जतां आपणा मनमां शुं बहु लका नहिं थाय ?" वलजड़े फरीश्री कह्युं . " हे मुकुंद ! निवे तें जेवी रीते एकवार पांरुवानो अपकार कस्यो वे. तेवीज रीते बहुवार उपकार पण कस्यो ठे. खरेखर ए पांवो उत्तम गुणवान् ने कृतज्ञ (करेला गुणने जागनारा) वे; तेथी तेन पूर्वे तमे करेला नपकारना स्मरणथी हति चित्तवाला ने तमारुं वहु गौरव करशे. " या प्रमाणे निश्चय करीने पगमे चालता ते बन्ने जाग्यो पांचोनी नगरी तरफ चाल्या. ग्रहो ! अति म्होटा पुरुषोने पण दैवश्री पुष्ट कर्मना फलरूप आवी दुर्दशा प्राप्त थाय वे !!! वे या द्वारका नगरीमां श्री कुब्जवारक नामनो वलनश्नो पुत्र पोतानी नगरीने दुग्ध श्रती जो अत्यंत जय पामतो बतो पोताना महेल उपर चमने कहना लाग्यो के. "हे देवतान ! हुं श्री नेमिनाथ प्रजुनो शिष्य कुं
SR No.010819
Book TitleRushimandal Vrutti Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShubhvarddhansuri, Harishankar Kalidas Shastri
PublisherJain Vidyashala Ahmedabad
Publication Year1901
Total Pages487
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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