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________________ श्री बल बलदेव चरित्र. ( २८१ ) तुटी परुवा लाग्या. मुक्ताफल भने मणियोथी जमित्र एवा चंडुवान तथा शाल विगेरे दिव्य वस्तु सलगवा लागी. कपूर तथा अगुरुचंदन विगेरे उत्तम वस्तुठनी कानोनी पण तेज दशा थवा लागी. वली ते वखते मनुष्योने प्रांधला करवावो धूमाको सर्व दिशानुमां प्रसरी जवाथी हाथी, घोमा अने बलद विगेरे मुख्य पशु तथा स्त्री पुरुष ने बालको पण बलवा लाग्या. ते वखते प्र 66 हा कृष्ण ! हा राम ! या महा प्रमिश्री पीमा पामेला अने प्रतिदीन चित्रवाला अमने रक्षण करो ! रक्षण करो !!" एवो महा भयंकर शब्द चारे बा - जुए संजलावा लाग्यो. ते वखते कृष्ण जेटलामां पोताना दिव्य शस्त्र, मंत्र अने मणि विगेरेथी निशांत करवा लाग्या तेटलामां तेमना अल्पपुण्यने सीधे चक्र, गदा, शं1 ख, बाण, हल अने मुशल विगेरे सर्व अस्त्रो अदृश्य थइ गयां पबी माताने विषे उत्कृष्ट जक्तिवाला कृष्ण बलजरे, देवकी तथा रोहिणी सहित वसुदेवने द्वारका नगरीथी व्हार लइ जवाने रथमां बेसाखा, परंतु ते वखते रथमां जोमेला घोमान, प्रनिश्री अत्यंत बलता बता जरा पण आगल चाल्या नहि. पबी कृष्ण बलज्जर पोतेज मातृभक्तिने लीधे रथने वलगी खेंचवा लाग्या जेटलामां तेन पोताना विशाल मंदिरना दरवाजा पासे आवी पहोच्या तेटलामां दरवाजाना बारणां बंध थयां जो के बल बहार निकलवा माटे से बंध थयेला कमाने नागी नाख्यां, तो पण ते क्षणमात्रमां पाठां एकगं थइ गयां. आ वखते आकाशमां ननेला अने जयंकर प्रकृतिवाला हैपायन देवे कृष्ण बलजश्ने क. " हे वीर पुरुषो ! तमे पोताना बलने फोगट शामाटे गुमावो वो? हुँ फक्त तमारा बन्ने जण विना बीजा कोइ बाल के वृदने बोमी देनार नथी. 1 पूर्वेकai करेल सर्व तपने पण निश्वे तेज माटे मूढ नावथी गुमावी दधुं बे. " पी माता पिताए कृष्ण बलनने कां. “दे पुत्रो ! तसे या स्थानथी दूर जता रहो. जो तमे जीवता रहेशो तो तमाराधी फरी वंश वृद्धि थशे. तमे माता पितानी शक्तिने लीधे पोतानी पूर्ण शक्ति प्रगट करी; परंतु पूर्व जवमां मेलवेला प्रमारां दुष्ट कर्मणी ते सफल यह नहि. जो के पुरुषार्थरहित एवा प्रमोए श्री नेमिनाथ प्रभु पासे दीक्षा न लीधी तो पी. संसारवासने अनुसरी रहेली या विटंबना अमने केस सुलन न घाय ? ३६
SR No.010819
Book TitleRushimandal Vrutti Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShubhvarddhansuri, Harishankar Kalidas Shastri
PublisherJain Vidyashala Ahmedabad
Publication Year1901
Total Pages487
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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