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________________ (१४) ऋषिमंगलत्ति-पूर्वाई. एटले नत्पन्न श्रयेला वैराग्यवाला पिता समुविजय राजाए तेने पोताने पदे स्थाप्यो. पठी जय नूपति अनुक्रमे चक्रवर्तीप' पाम्यो एटले तेणे सर्व लरतत्रने साधी चीरकाल पर्यंत चक्रवर्तीना नोगो नोगव्या. .। एक दिवस जय चक्रवर्ती विचार करवा लाग्यो के, “आवी चक्रवर्तीमी संपत्ति शी रीते प्राप्त पती हशे?" आम विचार करतो ते गुरु पासे गयो: त्यां गुरुने वंदना करी तेणे पूग्यु के, “आवी चक्रवर्तीनी लक्ष्मी कया पुएयथी प्राप्त थाय ले ? गुरुए अमृत समान मधुर वाणीथी नत्तर आप्यो के, "जे कांश नव्यपणुं प्राप्त पाय , ते सर्व धर्मनोज प्रन्नाव . तेमज हे रा. जन् ! आ लोकमां हाथी घोमा अने पायदलना समूहथी विस्तारवंत मनोहर राज्य, गाढ स्नेहथी अनूत रूपवाली अत्यंत मनोहर स्त्री, स्लेहवंत बंधुन अने, निरंतर निरोगी शरीर ए सर्व धर्मश्रीज प्राप्त थाय बे. वली नव्य पुरुषोने धर्मश्रीज कुवेर समान समृद्धि, निर्मल बुद्धि, कीर्ति, विनीत पुत्रो अने घरने विषे पूर्ण संपत्ति ए सर्व प्राप्त थाय ने. पूर्वे पुण्य करनारा प्राणीयोना मनोरश्रो सिह प्राय ठे अने पुण्य रहित प्राणीयोना मनोरथो तो वायुथी मेघपं. क्तिनी पेठे नाश पामे .” गुरुनां आवां वचन सांजली वैराग्य पामेला पुण्यवंत जय चक्रवर्तीये पोतानी समृद्धि त्याग करी प्रव्रज्या अंगीकार करी. पी शुन्न ध्यान अने तपरूप अग्निवमे वाली नाख्यो सर्व कर्मरूप काष्ट समूह जेणे एवा तथा बार धनुष्य प्रमाणे नंचा शरीरवाला अने त्रण हजार वर्षनी आयुष्यवाला ते जय• चक्रवर्ती मुनि मोद पाम्या. . ॥इति जय चक्रवर्ती चरित्रम् ॥ Acronommeविमल जिणेसरतिबे, थेराणं अंतिअंमि पवन॥ चन्दसपुदी पत्तो, महब्बलो पंचमे कप्पे ॥१॥ ततो चईत्तु जान, वाणिप्रगामे सुदंसणो सिलि॥ वीरमगासे पुणरवि, चन्दसपुच्ची ग सिद्धिं ॥३॥ अर्य-तेरमा विमलनाथ जिनेश्वरना तीर्थने विषे स्थविर आचार्यनी पासे
SR No.010819
Book TitleRushimandal Vrutti Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShubhvarddhansuri, Harishankar Kalidas Shastri
PublisherJain Vidyashala Ahmedabad
Publication Year1901
Total Pages487
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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