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________________ २९९ ] सत्यामृत - -- - - - बाधक घात का परिणाम बहुत खराब होता सताना, धर्मस्थानों के सन्मान के नाम पर है, बाधक घाती का पतन होता है इसेर लोग अपने अहंकार का पोषण करने के लिये जबउसके सम्पर्क में रहना पसन्द नहीं करते इस दस्ती या छल से दूसरों की सुविधाएँ छीनना, प्रकार वह घृणित और दुष्ट हो जाता है। किसी की निर्दोष स्वतन्त्रता में हस्तक्षेप करना मौज शौक के लिये किसी के प्राण लेना पश्न- अपना जीवन जब बिलकुल निरुपयोगी (शिकार ) या सताना, आदि नाना तरह के हो जाय, अपने को भी शान्ति न हो और दूसरों घात तक्षक बात है। पर भी बोझ होता हो ऐसे अनिष्ट जीवन का शान्तिपूर्वक त्याग कर देना कौनसा घात है ! पश्न-शिकार को तक्षक घात क्या कहना वैदिक धर्म जैनधर्म में इस प्रकार समाधिमरण चाहिये।शिकार तो क्षत्रियों का व्यायाम है इस करनेवालों की प्रशंसा की गई है। .. के बिना वे युद्ध में क्या कर सकेंगे शिकार के उत्तर- साधारणतः मनुष्य को जीवन और बिना क्षत्रियत्व को खुराक न मिलेगी और क्षत्रिमरण की तरफ से निरपेक्ष रहना चाहिये । न यत्व नष्ट हो जायगा । दूसरे मनुष्य अपने को ता जीवन की तीन लालसा हो न जीवन के कुचल देगे। दुःखों से घबराकर मरण की चाह, और न मरण उत्तर. अब तो युद्ध के साधन ऐसे बदल का भय हो । वह विश्वकल्याण में लगा रहे उसके गये हैं कि शिकार करने से आज के युद्ध का लिये अधिक से अधिक जीने की कोशिश करे अभ्यास नहीं हो सकता उसके लिये वम और और अगर मौत आ जाय तो बिना किसी विशेष हवाई जहाजों की जरूरत है। इनकी अजमाइश क्षोभ के मरने के लिये तैयार रहे। हा, कम के लिये पशुहत्या की जरूरत नहीं है। दूसरी कभी ऐसा अवसर आ जाता है कि जीवन से बात यह है कि अन्य जड़ वस्तुओं के सम्बन्ध से विश्वकल्याण नहीं हो पाना, अपना जीवन जगत समान का भी अभ्यास किया जा सकता के लिये दुदही जमा है तो उस प्रकार का है -- किया जाता है तब व्यर्थ पशुहत्या क्यों समाधिमरण साधक घात बायका का जाय । नहीं। लेकिन इसमें कपारका गोडा मी अंश तीसरी बात यह है कि युद्ध की आवश्यकता सदा नहीं रहेगी जब तक मनुष्य जंगली है तभी १२ नःकया-- को पर्वाह किये बिना को मारना तक्षकघात तक ये युद्ध हैं, एक दिन ऐसा आयण जव सम": .. . मरे पर चढ़ाई मनुष्य सामूहिक रूप में इतना जंगली न रहेगा। करना, बड़ा कहनाने के लिये दूसरों को वह दिन आयगा -- अवश्य आयगा । जबतक वह कचाटना, .... इच्छा के बिना दिन नहीं आया है तब तक युद्ध करने की क्षमता किसी प्रजा पर शामन करना, धर्म या जाति के अवश्य रहना चाहिये पर उपर्युक्त दो कारणों से अभिमानवश किमी का अपमान करना या उनके दिये शिकार की जरूरत नहीं है।
SR No.010818
Book TitleSatyamrut Achar Kand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year
Total Pages234
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size82 MB
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