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________________ भगवती के अंग आचार्य अपनी निंदा करके अपना धान करने हैं इसलिये यह वर्धक घात है। गुरु शिष्य के कदाचित् उपयम कर जाते हैं अथवा कोई दूसरा विकास के लिये कुछ प्रतारणा करता है कटसुसाधन छोड़ देते हैं तो यह सब काम है। वचन बोलता है तो यह बस्य की उन्नति के यह सम्झकर कि इसको समझाने का या लिये होने से वर्धक घात है। इसी प्रकार माता दंड देने का कोई अपर न होगा या बुरा असर पिता सन्तान की प्रतारणा करके जो उसकी होगा, उस की गलतियों के कष्ट को सहने जाना उन्नति के लिये प्रयत्न करते है यह भी वर्धक और उस से बचते रहने के लिये कष्ट सहना घात है। कोई महात्मा मम दिन के लिये अपने भी साधक घात है। प्राणों का बलिदान करता है तो यह भी वर्धक धात है, यह नहाया नही है। मेरा के ईप्रियजन है उस को किसी में आदमी ने सताया निसके साथ मेरा सम्बन्ध तो निकट प्रश्न... गार में मरी फैली हुई है जरूरत का है परं जो ऐसे मामलों में वह मेरी निष्पक्षना पर समझी जा रही है कि देवीके आगे एक मनुष्य विश्वास नहीं करता, इसलिये अपने प्रियजन का का बलिदान किया जाय तो मरी चली जायगी न्यायपक्ष का समर्थन करूं तो वह मुझे पक्षपाती इसके लिये कोई आदमी अपने प्राणों को चढ़ा ही समझता है, न्यायरक्षण का वास्तविक फल देता है तो इसे क्या कहा जाय ! अथवा वह कुछ नहीं होना, ऐसी हालत में उन से विशेष दूसरे किसी प्राणी का बलिदान करता है तो क्या कुछ न कहकर अपने प्रियजन काही डाँट ट- कहा जाय ! समार-मुख-गन इससे भले ही फटकार बनाना या अपने प्रियजन के घात का न हो पर उसका लक्ष्य यही है, भावना यही है समर्थन करना या चुप रह जाना भी और भावना के अनुसार ही पुण्यप होता है तब क्या इसेवक कहा जाय ! ___ मतलब यह कि अपना पक्ष न्याययुक्त होते उनर-श्रम और न्यायरक्षक घात भगवती हुए भी विश्वसुखवर्धन की दृष्टि से अपना घ.त की साधना है। भगवती का साधक इतना अविवेकी करना साधकघात है । नहीं होता कि वह मरी हटाने के लिये इस प्रकार . जीवन निरुपयोगी हो कर जब स्वपर प्राणिवध करे। जहां अविवेक है वहां भगवती की दुःखदायक हो जाय तब कपायरहित मनोवृत्ति से साधना नहीं है। इसलिये उस घात को वर्धक मौत का आलिंगन करना भी साधक घात है। नहीं कह सकते । वह अविवेकज घत है जो कि इस प्रकार साधक घात अनेक तरह का है। पाप है । यह तो हुआ अपने बलिदान के विषय में, २ वर्धक घात--जो घात विश्वकल्याण के दूसरे प्रणी के बलिदान के विषय में तो पापता लिये या घात्य के सुख की वृद्धि के लिये किया और बढ़ जाती है। क्योंकि इसमें निःस्वार्थत नहीं जाय वह वर्धक घात है । डाक्टर रोगी की शस्त्र- है जो तशकता पर आवरण डाल सके इसलिये चिकित्सा करता है, इससे रोगी को काफी तक यह तो तक्षक घात ही कहलाया, जो कि पूरा लीफ होती है पर है यह रोगी की भलाई के लिये पाप है।
SR No.010818
Book TitleSatyamrut Achar Kand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year
Total Pages234
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size82 MB
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