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________________ सन्यामृत विशेष फल नहीं होता । क्रोध करना और क्षमा प्रश्न- अगर आप क्रोध किट और कालि * क्रोध करना और फिर क्षमा मांगना को इस तरह पाप कहेंगे तो कहना पड़ेगा। इस प्रकार मनको नचाने से भी दूसरा यही इस पाप के बिना जगत में धर्म भी नहीं : समझता है कि हमें धोखा दिया जा रहा है। पायेगा क्योंकि धर्म के लिये सज्जनता अमरना न तो इतना तो मसझेगा अनुग्रह के साथ दुर्जनता के निग्रह की । .. करेगा पीछे जरूरत है, दुर्जनता के निग्रह के लिये क्रो भले ही मरहमपट्टी के समान क्षमा मांगले पर कालिमा की आवश्यकता तो है ही, पर अगर वर्क के से कोई अपना चमड़ा कटाने के तक किसी दुर्जनता का निग्रह न हो पाये । लिये रानी है। वर्षों तक क्रोध को सुरक्षित रखना पड़ेगा इस प्रश्न- बहुत से आदमी से होते हैं कि प्रकार क्रोध-किट भी आवश्यक हो जायगा । थे गाली आदि बकरेन पर ही शान्ति पाते है उत्तर- दुर्जनता के निग्रह के लिये क्रोधादि अगर वे ऐसा न कर ना उन का कत्र क्रोध- कषायकी ज़रूरत नहीं है किन्तु चिकित्साकिट्ट बनकर अपनी और दूसरा की हानि करता रहे। मनोवृत्ति की ज़रूरत है । न्यायाधीश अपाधी उत्तर- यमन (उल्टी) होजाने से पेट को दंड दे यह चिकित्सा है-क्रोध नहीं । भले साफ़ रहता है इसलिये उल्टी होजाना अच्छा ही दंड देने का कार्य वर्षों में हो तो इसे चिकित्सा भले ही कहा जाय पर जिसे उल्टी करने की हा कहा जायगा । कमी कमी ता ऐसा होता है अदन है उन गावचनेक कोशिको यह कि क्रोध प्रगट करना ही दंड का रूप बनजाता यानी उन के भरोसे खाते जाने बाल है । कल्पना करो कि अपने बेटेने कोई अपराध व्यक्ति गंदा तो है ही, पर अपनी और दूसरों को किया हमने कुछ कर्कश स्वर से डाटदिया तो परेशानी भी बढ़ाता है । अब यह है कि इसे कपाय न कहेंगे दंड कहेंगे इसलिये इसे अम्मको विकृत किए बिना पाया जाय अगा चिकित्सा में शामिल किया जायगा । हां, यह बात भी थोड़ी बहुत विकृति होजाय तो अनशन दूसरी ह कि इस प्रकार क्रोध-रूप दंड देना सफल आदिम पचन का अवकाश दिया जाय, अनशन हो या असफल, यह तो दंडविज्ञान का विचार के प्रयोग से भी विकार शान्त न हो तो उल्टी कलाया, पर मधरणात: यह चिकित्सा रूप है। गनिकाल : इसी तरह अच्छ। यह प्रश्न- तब तो हर एक आदमी यह कह कि क्रोध दम, हो जाय तो न्याय- सकेगा कि मैं तो कपाय नहीं रहता हूं किन्तु जनय दक दउसे पचाया । या । उस दंड दे रहा हूं। यह चिकित्सा है कि व.पाय है नान सनी का है और वि बन,लना इसकी कस टी क्या ? नाम है वि और करिमा ने रखना महापाप उत्तर- कप:य और चिकित्सा काअन्तर हे । यह टीक है : अ- अच्छा समझने के लिये चार बातों का विचार करना चाहिये घर कभी कभी ऐसा होता है कि अध पाप की १- चिकित्सा में वर्धन और रक्षण किया जाता ओट में महापाप जगह बना देता है। कषाय म भक्षण और नक्षण । २- चिकित्सा
SR No.010818
Book TitleSatyamrut Achar Kand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year
Total Pages234
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size82 MB
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