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________________ २६५] सत्यामृत होता है उसे बुरा कहता है । इस में स्वभाव का जब सुना कि राजा साहिब दर्शन करने के लिये ___ आरहे हैं तो वह राजा साहिब के स्वागत के लिये उत्तर-- अले धरे का निर्णय विश्वहित की आगे बढ़ा । राजाने देखा कि साधु जी मेरे स्वागत दृष्टि से ही किया जाना चाहिये । एक पहरेदार के लिये आरहे हैं तो वह लौट गया ।। अगर हमें चोरी कर लेनेदे तो हमें वह अच्छा साथियों ने पूछा, आप लौट क्यों आये ? टोमा पर नीकर की ऐसी नमकहरामी या विश्वास- राजाने कहा-मैं साधु के पास कुछ लेने गया था घातकता अच्छी चीज़ हो तो जगत के व्यवहार ज्ञान का भिखारी बनकर गया था, अगर साधु में इतनी गहबी आजाय कि उससे बह नौकर, मुझे कुछ देने लायक होता तो इस तरह मेरे स्वागत हम सरकार आदि मब नहाये। खद हम भी II, जब आगे बढा तब मैंने ऐसा नौकर रखना पसन्द न करेंगे। इसलिये अच्छे समझा कि वही मुझसे कुछ लेना चाहता है । बुरे का निर्णय विश्वहित की दृष्टिसे करना चाहिये तब मैं देने के लिये उसके पास क्यों जाऊँ ? अपने स्वार्थ की दृष्टि से नहीं। आमगौरव को छोड़ने का ऐसा ही परिणाम ___ अपवादों की भी कोई गिननी नहीं है। लोग होता है और होना भी चाहिये । अहंकार को भी अपवाद में शामिल कर सकते हैं इस प्रकार आमगौरव के नाम पर जो विनय आर अपवाद पर भी कारकी छाप छोड़ देते हैं उनकी भी साधना व्यर्थ जाती है । हैं पर प्रायः अन्न में अमन लिपी नहीं एकबार एक सेठने ज्ञानी बनने के लिये एक इसलिये दमिका की ओझा भतिर कोटन चहिये विद्वान को बुलाया सेठजी पलंग पर लेटे-लेटे पढ़ने कि मनमें अभिमान तो नहीं है। इस प्रकार लगे और विद्वान को नीचे जमीन पर बैठकर निकमा व्याक्ति में एक तरह का ब्याक्ति- पढ़ाने को कहा । पर बहुत दिन होने पर भी समभाव रहता है। मूल में न वह किसी व्यक्ति सेठजी कुछ सीख न सके। तब सेठजी पंडितजी कोयामम्झन हैन छोटा । अगर किसी में नोटा अगर किसी के मन मझकर और कटवा लेने लगे। एक गुणों की विदेोपता है, सेवकता है तो वह अपने दिन सेठजी बोले पंडितजी, मुझे प्यास लगी है ब्यक्तित्व का खयाल न कर उसका आदर करता मेरे यार से धीरेधीरे नी टाट दजिये । है अगर कोई गुणों में विशेष नहीं है न उस में पंडितजी ने पानी लिया और जमीन पर सेवकता बहुत है तो बड़ा महर्दिक पदाधिकारी बैठे बैटे पानी डालने लगे। सेठजी गुस्से से बोले और यशस्वी होने पर भी वह उसे साधारण दृष्टि क्या जमीन पर बैठे बैठे पानी डालने से मेरे मुंह में देना है। इस प्रकार उस में आमगौरव और में पानी चला जायगा ! म दोनों का भार सम्मिश्रण रहता है। जो पंडितजी ने कहा --- या चली जाती लोग बिनय के नामपर : खोदेते हैं ये ह तय पानी क्यों न चन्दा जायगा ! वास्तव में जगत को कुछ नहीं दे पाते। तब सेठजी समझे कि मुझे विद्या क्यों नहीं एक बार एक साधु की प्रशंसा सुनकर आ रही है ! तब अभिमान छोड़कर सेठजी नीचे एक गजगदर्शन करने के लिये आया । साधुने बैठने लगे और धीरे धीरे विद्वान बनन लगे।
SR No.010818
Book TitleSatyamrut Achar Kand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year
Total Pages234
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size82 MB
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