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________________ २३३ ] सत्यामृत - . . . . भक्षण न हुआ। परन्तु पुरानी सेवाओं का वास्त- पशु का जीवन इतना बेजिम्मेदार है तब उसको विक मून्य ( बाजारू मूल्य नहीं ) जानना कठिन मनुष्योचित स्वतन्त्रता मिलना कठिन है । उसके है इसलिये जहां तक हो सके उसे सेवा कार्य अनुरूप विनिमय के सिद्धान्त पर उससे सेवा ली करना ही चाहिये । हां अगर वह देखे कि मेरी जाय यही ठीक है। मकर ने कट जा रही हैं या लाभ के बदले प्रश्न--साधारण पशुपालन को विनिमय हानि कर रही हैं तब वह निवृत्त भी हो सकता कहा जा सकता है पर गोपालन तो विनिमय है या कुछ समय के लिये निवृत्त हो सकता है। नहीं कहा जा सकता क्योंकि हम उसका दूध प्रश्न-पशुपालन आदि भी एक तरह का पीते हैं । किसी के दूध पर भी अधिकार जमा भक्षण है क्योंकि इसमें पशुओं की शक्ति का अधिक लेना तो एक तरह का अन्याय है खास कर से अधिक उपयोग किया जाता है जब कि उन्हें बछड़े के साथ तो अन्याय है ही। भी मनुष्य के समान स्वतन्त्रता से जीवित रहने उत्तर-जिन जानवरों से दूसरा कोई परिश्रम का अधिकार है। नहीं लिया जा सकता फिर भी अगर हम उनका ..उत्तर-इसमें कुछ न कुछ भक्षण होने पालन पोषण रक्षण करते हैं तो उनसे दूध लेना की सम्भावना पूरी है फिर भी पशुपालन बिलकुल अनुचित नहीं है। पालन पोषण का उचित भक्षण नहीं कहा जा सकता। क्योंकि उनसे बदला मिलना जरूरी है और वह दूध के द्वारा जो सेवा ली जाती है उसके बदले में सेवा की भी मिल सकता है इसलिये दूध लिया जाता है । भी जाती है और उनका रक्षण भी किया जाता बछड़े के पालन पोषण की जिम्मेदारी भी हमारे है इसलिये पशुपालन विनिमय के सिद्धान्त पर ऊपर है इसलिये बछड़े को भी कुछ त्याग करना खड़ा हुआ है। हां, निर्दयता से सवा लेना उन पड़ता है फिर भी कुछ दिनों तक तो उसे पूरा की ठीक रक्षा न करना भरपेट खाने न देना दूध दना ही चाहिये दिया भी जाता है बाद में अवश्य भक्षण है इसलिये हिंसा है। यद्यपि मनुष्य दूध के बदले में कोमल घास दिया जाता है के समान पशु को भी स्वतन्त्रता से जीवित रहने और थोड़ा दूध भी चालू रहता है। एक बात और के अधिकार है परन्म अधिकार कुछ जिम्मेदारी भी है कि जितना दूध पैदा होता है उतना दूध भी मांगता है। मैंने अपने मकान के पास थोड़ी सदा बछड़ा पीता रहे तो उसके पेट में कीड़े मी जगह में शाक तरकारी लगाई में उसके लिये पड़ जाते हैं इसलिये सारा दूध उसे पिलाना भी दिन में दो बार पानी देना हूं जमीन को तयार न चाहिये इस बचे हुए दूध का उपयोग मनुष्य किया था स्वाद लाकर डाला था अब भी साफ करे तो बुराई नहीं है। मतलब यह है कि बछड़े मामाई करता है इस प्रकार मेरे बड़े परिश्रम का को भूखा माना पड़े भूख के कारण उसका फल कई पशु बिना पूछे ग्वा जाना है अगर विकास रुक जाय ऐसा न होना चाहिये । बछड़े में बाम बोहगाडकर ये क भी लगाता हूं तो बह का भी खयाल रक्खा जाय और दूधारू जानवर के उपक भी पहनीवरता, और दूसो पशु का पालन के लाभ का अर्थात् विनिमय का भी लक्ष्य म . चूकता इस प्रकार जब रक्खा जाय तो गोपालन आदि में पाप नहीं है ।
SR No.010818
Book TitleSatyamrut Achar Kand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year
Total Pages234
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size82 MB
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