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________________ २३१ ] मत्यामृत व्यवहार पंचक भक्षण का अवसर आ जाने पर भी वह विनिमय जब कोई प्राणी हमारे स्वार्थ के सम्पर्क में करता है तो यह उसकी अहिंसा का कार्य है, आता है तब हम उसके स्वार्थ के विषय में पांच विनिमय यहां पर रक्षण बन गया है । इसी तरह का व्यवहार करते हैं १ वर्धन, २ रक्षण, प्रकार विनिमय जहां भक्षण बन जाय वहां हिंसा ३ विनिमय, ४ भक्षण, ५ तक्षग, । इन में से म नसे कार्य हो जायगा । जैसे माता पिताने सर्वस्त्र वर्धन और रक्षण भगवती अहिंसा के कार्य हैं लगाकर पुत्र का पालन किया पुत्र समर्थ होकर और भक्षण तक्षण पापिनी हिंमा के । विनिमय न इतना कमाने लगा कि वह माता पिता का पोषण तो हिमा है न अहिंसा, किन्तु भक्षण और तक्षण कर सके अब माता पिता का रक्षण करना उस के अवसर पर भी विनिमय किया जाय तो वह का कर्तव्य है पर वह माता पिता से कहता है अहिंसा का कार्य हो जायगा और वर्धन या कि तुम कमाकर लाओ तो खाना दूंगा नहीं तो रक्षण के स्थान पर विनिमय किया जाय तो वह नहीं, यह रक्षण के स्थान पर जो विनिमय है वह हिंसा का कार्य हो जायगा । हिंसा है क्यों के यह विनिमय भक्षण बन गया है। इसमें लिये हुए नैतिक ऋण का. चुकाना नहीं है, १ वर्धन-विनिमय का विचार न रखते हुए इसमें कृतघ्नता है इसलिये यह हिंसा है भक्षण है। दुसरे के सुखको बढ़ाना वर्धन है। जैसे हमने भक्षण-अपने स्वार्थ के लिये दूसरों के किसी को दान दिया और इस बात की पर्वाह न की कि हमें यश मिलेगा या नहीं तो यह जीवन का, उनकी शक्तियों का या उनकी सम्पत्ति का, उचित बदला दिये बिना अर्थात वर्धन हुआ । विनिमय का उत्तर दायित्व लिये बिना छल या २ रक्षण-विनिमय का विचार न रखते बन के प्रयोग से उपयोग करना या उसका हुए दूसरे के सुव का रक्षण करना या उसको प्रयत्न करना भक्षण है। जैसे चोरी करना, दुख न होने देना रक्षण है। जैसे किसी की ठगना, किसी देश को या जाति को या मनुष्य को मम्पत्ति को चोर आदि से बचाना। गुलाम बना लेना आदि । भक्षण जब विश्वहित ३ विनिमय-ऐमा लेन देन, जिससे अपना भी के विरुद्ध हो जाता है तब हिंसा पापिनी का स्वार्थ सिद्ध हो और दृमो का भी स्वार्थ सिद्ध कार्य कहलाता है। हो, विनिमय है । जैसे बाजार में हमने सौदा प्रश्न-एक साधु भिक्षा तो लेता है पर खरीदा, हमने पूरे पैसे दिये उसने परा सौदा उसके बदले में कुछ नहीं देता न भिक्षा देनेवाली दिया यह विनिमय है । परन्तु मानलो मैंने कहा जनता ही इस बात की पर्वाह करती है तो क्या कि मे जरा दूसरे काम में जाता हूं तुम सौदा यह भक्षण हिंमा कहलायगा । बाल कर सम्बना, मौदा ऐसा है कि अगर दूकान- उत्तर-साधु के ऊपर समाज सेवा की जो दार घोड़ा बहुत कम तौले तो पकड़ा न जाय जिम्मेदारी है उसमें विनिमय का सिद्धान्त काम फिर भी बह जरा नी कम नही नालता या उन कर रहा है इसलिये साधु भक्षक नहीं है । अगर मेंबरराव मान्द गामि नहीं करना इस प्रकार पेट पालने के लिये या आदर पूजा यश लूटने
SR No.010818
Book TitleSatyamrut Achar Kand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year
Total Pages234
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size82 MB
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