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________________ कल्याणपथ पात्र वह है जिसको दान देने से धन का पास आय तो वह प्रतिनिधि पात्र कहलायगा । पात्र सदुपयोग हो अर्थात न तो पात्र का पतन हो, संस्था है वह सिर्फ प्रतिनिधि है, वह खुद पात्र न दाता का पतन हो, न दुनिया का पतन हो इसलिये नहीं है क्योंकि उसका संस्था के साथ नैतिकता कायम रहे या बढे और किसी न किसी सम्बन्ध आज.विकाप्रधान है सेवाप्रधान नहीं । को सुख हो । पात्र पांच तरह के होते प्रतिनिधिपात्र को अलग बताने की ज़रूरत इसहै--१ श्रद्धापात्र २ प्रतिनिधिपात्र, ३ करुणापात्र लिये है कि प्रतिनिधिपात्र अपने की श्रद्धापात्र न ४ प्रेमपात्र ५ व्यवहार पात्र। समझ ले । प्रतिनिधिपात्र को दान देते समय १- श्रद्धापात्र वे हैं जो निस्वार्थ भाव से हमें उसकी विश्वसनीयता देखना चाहिये। जगत की सेवा करते हैं जगत को सन्मार्ग पर ले ३ करुणापात्र उस कहते हैं जो दीन होने जाते हैं साधु हैं, या त्यागी है, उनको जो दान के कारण शब्दों से या मौन रूपसे याचना करता चाहिये वह श्रद्धा से देना चाहिये. चाहे उन्हें है। किसी भी दुखी को देखकर हमारे दिल में भोजन कराना या पानी पिलाना हो चाहे बड़ी दया उपल्न होना चाहिये और उसके दुःख को रकम देना हो । उन्हें तिरसकृत या उपेक्षित न दूर करने की कोशिश करना चाहिये । करना चाहिये । न करुणाभाव से देना चाहिये । करुणा पात्र में यही देखता चाहिये कि जिनने पूजा कराने के लिये श्रद्धापात्र का सचमुच वह करुणा करने के लायक है या नहीं? वेष बनाया है, जो दुनिया को सन्मार्ग पर नहीं बहुत से लोग भीख मांगने को अपनी विवशता ले जाते हैं लेकिन उसके भीतर अहंकार द्वेष आदि नहीं समझते किन्तु धंधा समझते हैं इसके लिये पैदा करते हैं धर्भ जाति आदि के नाम पर अहं- वे भीख मांगने की कला का अभ्यास करते हैं, कार की पूजा कराते हैं दंभी हैं वे कुपात्र हैं इन्हें लोगों का दिल पिघलाने की कला सीखते हैं, भीख श्रद्धाभाव से दान न देना चाहिये। मांगने के लिये व्यवस्थित टोलियां बनाते हैं इस __ जो इस प्रकार के अनर्थ तो नहीं करते काम के लिये नौकर रखते हैं। ये सब दान देने के पर दुनिया के किसी काम भी नहीं आते, न पात्र नहीं है । ये लोग सिर्फ अपात्र ही नहीं हैं पहिले भी इतनी सेवा की है जिसके बदले में किन्तु समाज के शत्रु हैं । न केवल ये दुराचार उन्हें दान दिया जाय, वे अपात्र है । अपात्र को फैलाते हैं किन्तु करुणापात्रों के जीवन को भर भी श्रद्धा भाव से दान न देना चाहिये। हां, वह बनाते हैं ।। करुणा आदि की दृष्टि से पात्र भी हो सकता है बहुत से ऐसे आदमी अनुदार नहीं होत और उस दृष्टि से दान दिया जा सकता है। फिर भी करुणदान में हाथ सिकोड़ते है, कारण २-प्रतिनिधिपात्र वह है जो खुद तो पात्र सिर्फ यही कि सौ में असी आदमी करुणास्पद नहीं है पर किसी व्यक्तिपात्र या समाजपात्र का होने का ढोंग करते हैं और धोखा देते हैं । प्रतिनिधि है । जैसे कोई शिक्षण संस्था है उसके लिये टोगियों के फैलने से असली करुणास्पद छिप चन्दा लेने के लिये उसका एक कर्मचारी हमारे जाते हैं उनकी करुणास्पदता गियों के आंग
SR No.010818
Book TitleSatyamrut Achar Kand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year
Total Pages234
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size82 MB
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