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________________ विशेष साधना-तप [३८८ श्यक है। भूल स्वीकार करलें माफ़ी मांग लें । हम देखेंगे कि ..... बहुत से लोग वर्ष में एक दिन साल भर के इससे हमारा गौरव बढ़ गया है, उसके हृदय का अपराधों की माफी मांग लेते है, कीटपतंगो के वैर निकल गया है, प्रेम बढ़ गया है और आगे . नाम ले लेकर उनसे भी माफी मांग लेते हैं और होनेवाले अनेक अनर्थ रुक गये हैं। . इसी में समझ लेते हैं कि जिसका अपराध किया किसी भी गृहस्थ को एक वर्ष से अधिक है उनसे भी माफी मांग ली गई । परन्तु यह वैर रखना ही न चाहिये और जो साधु है उसके आत्मवंचना है । जमीन के जिस भाग में सेल मन में तो इनेगिने दिन से अधिक वैर की वासना और कीट जमी हुई है उस जगह एकबार फूल- न रहना चाहिये । किसकी वैर वासना कितनी झाडू फेर देने से सफाई नहीं होती, उसी प्रकार लंबी है इसीसे उसके संयम की परीक्षा करने का जिस जगह द्वेष और अपराध जमा हुआ है उस भी बहुत अच्छा तरीका है। जगह सामूहिक प्रार्थना के साधारण शब्दोंसे जीवन मे जो बड़े बड़े अनर्थ होते हैं उनमें सफाई नहीं हो सकती । उसके लिये विशेष रूप से आधे अनथों का कारण अहंकार है । लोगों से क्षमायाचना करने की आवश्यकता है । हमारे को भ्रम हो जाता है कि अहंकार से गौरव हृदय में वर की वासना लंबे समय तक न रहे मिलता है पर वास्तव में अहंकार से निन्दा और इसलिये वर्ष में एक दिन मिलकर क्षमायाचना घृणा ही मिलती है । अहंकार अगर छूट जाय करना अच्छा है परन्तु अगर मनका मैल न गया तो हम व्यर्थ का वैर लेकर जीवन को दुःखी हो, हमने अपने अपराधों पर निःपक्ष विचार न न करें, न दूसरों के दुःख के कारण बनें क्षमाकिया हो, हम उस अपराध की आलोचना करने को , याचना उस समय बहुत सरल हो जाय । बैयार न हों तो क्षमायाचना महत्व-हनि हो जायगी, सम्भवतः निष्फल जायगी। ___ कभी कभी सामूहिक अपराध होते हैं और उनकी आलोचना और क्षमायाचना भी सामहिक सांवत्सरिक क्षमापना का सम्मेलन उन लोगों के लिये विशेष उपयोगी है जो यह सोचते हैं कि दृष्टि से होना चाहिये । एक ही देश में दो हम अमुक व्यक्ति से कसे मिलें, किस बहाने से जातियां बसती है, उनमें एक जाति के कुछ मनष्य उसके घर जायें और वहां जाकर किस दूसरी जाति के मनुष्यों का अपमान करते हैं या बहाने से उनसे बात करें । वे क्षमापणा-सम्मे- सताते हैं, ऐसे समय में जातीयता का मोह छोड लन, के निमित्त से यह कार्य कर सकते हैं। कर अगर कुछ जिम्मेदार व्यक्ति आलोचना और परन्तु आखिर सम्मेलन निमित्त मात्र है, असली क्षमायाचना करें तो दो जातियों के वैर की इति चीज़ तो अपनी निर्वैर वृत्ति और आत्मशुद्धि की सद्- श्री हो जाय । पर यहां भी जातीयता के नाम . भावना है। वह हो तो निमित्त सफल हो सकता है। पर अहंकार आड़े आ जाता हैं और बड़े से बड़े र अगर हममें झूठा अहंकार न हो तो क्षमापणा अनर्थ को पैदा करता है या जीवित रखता है । में चाल चलने की कोई आवश्यकता नहीं रहती। अगर जगह २ ऐसे दल या संघ बन जावें जो हम प्रसन्नचित से उसके घर चले. जायँ, अपनी और कुछ न करें प निःपक्षता से अपनी जाति
SR No.010818
Book TitleSatyamrut Achar Kand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year
Total Pages234
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size82 MB
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