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________________ अहित करती है उस सत्य को या शक्ति को प्रकाश में अने के लिये मनुष्य को कुछ ऐसा व्यवहार करना पड़ता है या बोलना पड़ता है जिससे उसकी महत्ता की छाप जनता पर पड़े। कभी कभी इससे वे मुक्तपुण्य या नष्ट हो जाते हैं अथवा मुक्तपुण्य या नष्ट पुण्य होने आरोप तो उनके ऊपर किया ही जा मकता ऐसी हालत में वे क्या करें ? का है उत्तर -मुक्तपुण् या नष्टपुर कहलाने की तो उन्हें पर्वाह न करना चाहिये किन्तु न होने की पवई अवश्य करना चाहिये। यह बात उन की भावना पर निर्भर है अगर भावना हो तो किसी न किसी रूप में उसके कार्य भी दिखाई देने लगते हैं। कुछ चिह्न ये हैं १ कभी कभी जीवन में ऐसे प्रसंग आते हैं जब सत्यपथ पर चलने में निंदा उपेक्षा विरोध और अर्थसंकट झेलना पड़ते हैं और सत्यपथ छोड़नेपर पूजा आदि मिलने की पूरी सम्भावना होती है, ऐसी हालत में वह यश धनं पद आदर आदि की पर्वाह न करके सत्य या वास्तविक लोकहित की पर्वाह करे । २- अपनी दृढ़ता का परिचय अपने कार्यों से दे, शब्दों से दृढता का परिचय सिर्फ उसी जगह दे जहाँ न देने से लोग सत्य पर भी अविश्वास करने लगे । पर दृढ़ता के गीत ही न गाता रहे । ३- ऐसी जगह अपने नाम को आगे लाने की कोशिश न करे जहाँ उसकी जरूरत नहीं है। नाम के लिये ही नाम आगे लाया गया है ऐसा न मालूम हो । ४- नाम देने के लिये उत्सुकता जवाज आदि का परिचय न दे। जहाँ तक हो अपने नाम को अपने हाथ से आगे खाने की कोशिश न करे, ऐसी आने पर कुछ ना होता हुआ अपना नाम आगे लावे । ५- नाम देने, आदि के विषय में शिष्टाचार के नियम का भंग न करे । ६- अन्य सत्यमेवकों का या दूसरों का उचित स्थान लेने को न करें । ७- अपने नाम की छाप वहीं पर लगाने जहाँ नाम देने से सत्य के प्रचार में और महल में सुविधा हो अथवा जनता की माँग के अनुसार नाम देना आवश्यक हो । मतलब यह कि सत्यसेवा या ग की मुख्यता रहना चाहिये, ऐसा कोई कार्य न करना चाहिये जिसने यह मालूम हो कि तुम अपने नाम के लिये तड़प रहे हो और मौके बेमौके उसे घुसेड़ रहे हो । इस प्रकार विचार और व्यवहार की शुद्धता रहने पर भुक्तपुण्य या नष्टपुण्य होने का डर नहीं रहता | दुनिया को अगर भ्रम होता है तो वह कुछ समय बाद दूर हो जाता है । ६ - अजातपुण्य प्रवृत्ति - जब हम अपने पाप छिपाने के लिये कोई पुण्य कार्य करते हैं. तो वहां पैदा नहीं होने पाता । जैसे कड़ी जमीन में हल चलाये बिना बीज डाल देने पर भी खेती नहीं होती उसी प्रकार जो जमीन पाप से कठोर है उस की कठोरता मिटाये बिना उसमें पुण्य का अंकुर नहीं निकल सकता | जब किसी उपाय से जमीन नरम कर दी जाती है हल चलाकर उसके नीचे का भाग खुला कर दिया जाता है तब बीज उग जाता है। उसी प्रकार जबतक मनुष्य पाप की आलोचना तथा नाय त
SR No.010818
Book TitleSatyamrut Achar Kand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year
Total Pages234
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size82 MB
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