SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 162
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवती के उपांग ३६८ - प्रबन्ध में जो खर्च होता है उसके लिये दर्शकों पालन किया जाना है. मोलाटी के प्रबन्धक से टिकिट के पैसे लिय जीप तो क्या बुगः उपानही रहने, और लाटग भरने वालों के उनः' मा बनिहरादर्शक मन में संस्थाको मदद देने की मन्यता है नो लिये टिकिट लगाओ को इनाम भी उनका उपाय भी आधे से अधिक दर हो जाता दो, पर दर्शकों में सेना स्टोर अमुक पाने का है। पर अब यही है कि संस्था को मदद देने जीन र दाव लगाने हैं बदजनदा के लिये भी इसका उपयोग न किया जाय, अन्यथा न खलना चाहिये। इसकी ओट में जब के बहुत से कप घर बना लेंगे। में था ! दुगों को बात से लोग रुपये पैसे बिछाकर उसमें मिर्फ एक एक करया जाना और एक अदम चूड़ी फेंककर फंसाने की अंधा करते हैं यह पूरा ध बान बनकर मुखी हो जाता है। जूबा तो है ही, साथ ही जनता को ठगन भी है। उत्तर में और हाल कोई कोई लोग पानी के अफ डिम्पी कागज सब में मुफ्तबाग की वृत्ति पैदा होती है, सभी की चिन्दियां नितारे यह भी जवा और विना परिश्रम के पैदा करना चाहते हैं, यह वृत्ति ठगाई है इनके अहेब ले और खिलाड़ी दोनों जुवाड़ी किसी भी मनष्य के लिये कलंक की बात है। है । जवे के सैकड़ों रूप है उन सबका त्याग फिर इससे न तो समाज को काल सम्पत्ति मिलती करना चाहिये । समाज को कुछ उचित संवा है न ब्यापार के समान एक जगह से दमरी जगह देना और उसके बदले में जीवन निर्वाह के लिये चीज जाती है जिससे किसी चीज को पाने की कल लेना यही उचित है। जूना अनेक लोगों को सुविधा मिले । कोई उपयोगी चीज अनों की जड़ तथा मुफ्तम्बारी है। पैदा की जाय या लोगों के पास पहुंचाई जाय ४ मट्टा भी एक प्रकार का जूवा है पर इसी के बदले में किसी का पैसा लेने का अधिकार से व्यापार का का ऐसा रूप मिल गया है या है, लाटरी में ये दोनों बाते नहीं है इसलिये या उसमें व्यापार का ऐसा मिश्रण हो गया है कि दुरर्जन है। जबाफमा चिन्ता व्याकरता उमे जूगा से अलग करके कहना पड़ता है। भी होती है इसलिये इसका समायश जबा में वास्तव में जूना के साथ इसमें बहुत समानता है। ही करना चाहिये। जिम प्रकार जूना में चार नगरः या अनिप्रश्न लाटरी डालकर अगर किसी संस्था को चिता है करीब करीब उसी प्रकार सहे में भी मदद दी जाय तो क्या बुराई है! है। जूवा में जिस प्रकार न तो कोई चीज पैदा उन्रक में दो तरह के उपापी है की जाती है नन बनाई जाती है, इसी एक तो वे जो लाटी खोलते और उसनका प्रकार सट्टे में भी है । सट्टे में चीज जहां की ले लेते है, मेरे वे जो लाटरी काय भा करत पड़ी रहती है, इस प्रकार सट्टः और जूवा में इकदम धनवान हो जाना चाहते है। अगर किसी दोनों सानतार हैं। योग्य संस्था को मदद देने के लि। लाटरी माई साथ ही एक तीसरी समानता यह है कि जाती है और ना के साथ उसका जैसे जूया में एक पक्ष की हार पर दूसरे पक्ष
SR No.010818
Book TitleSatyamrut Achar Kand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year
Total Pages234
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size82 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy