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________________ ३४१] भत्यामृत विवेचन साधक-अतथ्य के विवेचन में किया गया इससे प्रेम और आत्मीयता बढ़ती है । इतिहास विज्ञान है । यह अतथ्य गहरा पाप है। आदि में इसी की अधिक से अधिक आवश्यकता है। १२ तक्षक अतथ्य-ऐसा झूठ बोलना २ शोधक तथ्य-दूसरे व्यक्ति के या. समाज जिससे दूसरों के दिल को चोट पहुँचती हो, उसकी के दोप इस मतलब से कहना कि ये दूर हो जाय, झूठी निन्दा होती हो, पर अपना कोई स्वार्थ सिद्ध न निन्दा का भाव मनमें न हो, सुधार का भाव मनमें होता हो। अपना कोई लाभ हो या न हो पर बहुत से हो तो यह शोधकतथ्य है । समाज सुधारक आदि आदमियों को ईर्ष्या अहंकार आदि के कारण इसमें को यह शोधक-17 बहुत कहना पड़ता है । खूब मजा आता है कि दूसरे की झूठी निन्दा की इसी आशय से पिता पुत्रके, गुरु शिष्यके दोष जाय, दूसरे के दिल को झूठी बात कहकर चोट बताता है, शोधक तथ्य अप्रिय तो हो जाता है पर पहुँचाई जाय आदि । यह अतध्य पूरा पाप है। उसके मूल में सद्भावना और हितैषिता रहती है । १३ भक्षक अतथ्य - स्वार्थवश झूठ बोलना, प्रश्न-अगर कोई मनुष्य बदमाश है, धूर्त है, इन अनयभेदों का अच्छाबुरापन प्राणघात के समाज को ठगता है, अथवा अपनी अज्ञानता या समान है । उसपर विचार करके अतथ्य का नासमझी के कारण समाज को कुराह में ले जाता न्याग करना चाहिये। है या समाज की हानि करता है तो उसके कार्यों इन भेदों के विवेचन से इतना पता लग की निन्दा करना पड़ती है या विरोध करना जाता है कि अतथ्य वचन छोड़ने योग्य होने पर पड़ता है; विरोध में उस व्यक्ति के सुधार की भी कोई कोई अतथ्य वचन अच्छे हैं। इसलिये भावना गौण हो जाती है पर समाज के रक्षण या साधारणतः तथ्य और सत्य का साहचर्य होने पर सुधार की भावना रहती है तो इसे क्या कहा जाय ? भी कभी कभी और कहीं कहीं अतथ्य भी सत्य उत्तर- इसे शोधक-तथ्य कहना चाहिये हो जाता है । इसी प्रकार यह भी खयाल में क्योंकि इसमें अगर व्यक्ति की निन्दा भी है रखना चाहिये कि कहीं कहीं और कभी कभी तो समाज के हित के लिये है। हां, व्यक्ति यमी अमन्य हो जाता है। की निन्दा करने के लिये समाजहित की यहाँ माय-भाषण के कुछ भेद कर दिये दुहाई दी जाती हो, समाजहित का बहाना जाते है जिससे तथ्य की सत्यासत्यता जानने में बनाया जाता हो तो यह निन्दक-तथ्य होगा । और व्यवहार करने में सुभीता हो। अगर निन्दा झूठी हुई तब तो यह तथ्य ही १-शुद्ध, २-शोरक, ३-प्रमादज, ४-राह- न कहलाया यह तो तक्षक या भक्षक अतथ्य स्विक, ५-निन्दक, ६ पापोतेक। बन गया । शोधकतथ्य तभी होगा जब अपनी १ शुद्ध नथ्य-जिसमें भलाई-बुराई का विशेष बात ईमानदारी से ज्यों की त्यों कही जायगी, विचार नहीं है, तथ्य को अधिक से अधिक हित- एक तरह की निष्पक्षता होगी, व्यक्तिगत विरोध कारी मानकर कह दिया जाता है, बोलचाल में होगा पर निन्दा झूठी न होगी, एक व्यक्ति का माधारण लोग जिसे मुख्य रूपमें सत्य मानते हैं वह विरोध बहुत से व्यक्तियों के अहित को दूर शुखमय है। इसे विश्वासवर्धक भी कह सकते हैं। करने वाला होगा ।
SR No.010818
Book TitleSatyamrut Achar Kand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year
Total Pages234
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size82 MB
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