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________________ पार्श्वनाथका चातुर्याम धर्म धर्मकीर्तिके दो श्लोक धर्मकीर्ति अपने प्रमाणवार्तिकमें कहते हैं :वेदःप्रामाण्यं कस्यचित्कर्तृवादः स्नाने धर्मेच्छा जातिवादावलेपः । सन्तापारम्भः पापहानाय चेति ध्वस्तप्रज्ञानां पञ्चलिङ्गानि जाड्ये* ॥ [ अर्थात् जिनकी प्रझा ध्वस्त हुई है उनमेंसे कोई वेदप्रामाण्य, कोई जगत्कर्तृवाद, कोई स्नानमें धर्मबुद्धि, कोई जातिका गर्व और कोई पापक्षालनके लिए देहदण्डन ले बैठता है। उनकी जड़ताके ये पाँच चिह्न हैं। ये पाँच बातें धर्मकीर्तिके समय अर्थात् ईसाकी सातवीं शताब्दीके प्रारम्भमें मौजूद थीं। उन सबमें जातिवाद विशेष प्रबल हो रहा था। पर उसे तोड़नेकी चेष्टा इन श्रमणोंने नहीं की। दूसरा एक श्लोक श्रीधरदासने सदुक्तिकर्णामृतमें धर्मकीर्तिका कहकर उद्धृत किया है । वह इस प्रकार है : शैलैबन्धयति स्म वानरहृतैर्वाल्मीकिरम्भोनिधि । व्यासः पार्थशरैस्तथापि न तयोरत्युक्तिरुद्भाव्यते ॥ वागार्थों तु तुलाधृताविव तथाप्यस्मत्प्रबन्धानयं । लोको दूषयितुं प्रसारितमुखस्तुभ्यं प्रतिष्ठे नमः ॥ [अर्थात् वानरोंद्वारा लाये गये पर्वतोंसे वाल्मीकिने और अर्जुनके * प्रमाणवार्तिक, राहुल सांकृत्यायनका संस्करण, The Journal of The Bihar and Orissa Research Society, Vol XXIV, 1938 Parts I, II. x Punjab Sanskrit Book Depot (Lahore) संस्करण पृष्ठ ३२७ ।
SR No.010817
Book TitleParshwanath ka Chaturyam Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmanand Kosambi, Shripad Joshi
PublisherDharmanand Smarak Trust
Publication Year1957
Total Pages136
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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