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________________ हेमचन्द्रसूरि और जब देवबोध अपने परिवारके साथ सरस्वती नदीके किनारे शराब पी रहा था तब राजाको वहाँ ले जाकर वह दृश्य दिखा दिया। राजाने देवबोधको अपने राजमें रख लिया; परंतु पहलेकी तरहका उसका सम्मान नहीं रहा और उसपर भिक्षा माँगकर जीनेकी नौबत आ गई। तब अभिमान छोड़कर वह हेमचन्द्रसूरिके पास गया । हेमचन्द्रसूरिने उसे अपने आधे आसनपर बिठाकर उसका सम्मान किया; और सिद्धराजसे उसे और एक लाख द्रम्म दिलवाये । सिद्धराजके लड़का नहीं था । अतः उसने तीर्थक्षेत्रोंकी यात्रा की। उस यात्रामें उसने हेमचन्द्रसूरिको अपने साथ लिया । प्रभासपट्टणके शिवालयमें राजाके साथ शिवकी स्तुति करके हेमचन्द्रसूरिने भी शिवको नमस्कार किया; क्यों कि अविरोध ही मुक्तिका परम कारण है ! ___ वहाँसे राजा कोटिनगर (कोडिनार ) गया। उस अवसरपर हेमचन्द्रसूरिने तीन दिन उपवास करके वहाँकी अंबिका देवीकी आराधना की। देवीने साक्षात् दर्शन देकर कहा, “हे मुनि, मेरी बात सुनो। इस राजाके भाग्यमें संतति नहीं है। इसके चचेरे भाईका बेटा कुमारपाल इसके बाद राजा बनेगा।" . जब यह बात सिद्धराजको बताई गई तो वह कुमारपालकी हत्या करनेकी सोचने लगा। कुमारपालको इसकी खबर मिल गई और वह जटाधारी शैव संन्यासी बनकर घूमने लगा। राजाके चार आदमियोंने उसका पता लगाया तो वह लगभग राजाके हाथमें आ ही गया था; परन्तु बड़ी चतुराईसे छूट गया और हेमचन्द्रसूरिके उपाश्रयमें पहुँचा ।। हेमचन्द्रसूरिने उसे ताड़पत्रोंमें छिपा दिया और राजपुरुषोंको उसका पता नहीं लगने दिया। इसके बाद कुमारपाल कापालिक कौल बनकर
SR No.010817
Book TitleParshwanath ka Chaturyam Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmanand Kosambi, Shripad Joshi
PublisherDharmanand Smarak Trust
Publication Year1957
Total Pages136
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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