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________________ ४२ पार्श्वनाथका चातुर्याम धर्म सिद्धराजने हेमचन्द्रसूरिको बुलाकर इस मामलेमें पूछताछ की। हेमचन्द्र बोले, " हमारे ग्रंथोंमें वैसा लिखा है। परंतु ये पाण्डव महाभारतके नहीं हैं। कहते हैं कि भीष्मने युद्धके प्रारंभमें अपने परिवारके लोगोंसे कह रखा था कि उसके शरीरका दाह ऐसे स्थानपर किया जाय जहाँ किसीका भी दाहकर्म न हुआ हो। इसके अनुसार उसका शव एक निर्जन पहाड़ीपर ले जाया गया । वहाँ अचानक ऐसी आकाशवाणी हुई कि अत्र भीष्मशतं दग्धं पाण्डवानां शतत्रयम् । द्रोणाचार्यसहस्रं तु कर्णसंख्या न विद्यते ॥ [अर्थात् यहाँ सौ भीष्मों, तीन सौ पाण्डवों, हज़ार द्रोणों और अनगिनत कर्णौको जलाया गया है।] ऐसे अनेक पाण्डवोंमेंसे जन पाण्डव भी होंगे; क्यों कि शत्रुजय पर्वतपर उनकी मूर्तियाँ हैं।" सिद्धराज बोला, " ये जैन मुनि जो कहते हैं वह सत्य है।" और हेमचन्द्रसूरिसे कहा, "आप लोग अपने आगमोंके अनुसार सत्य कथन करते हैं, उसमें कोई दोष नहीं है।" इस प्रकार सिद्धराजसे सत्कृत हुए श्री हेमचन्द्र प्रभु जैनशासनरूपी आकाशमें सूर्यके समान प्रकाशमान् हुए। एक बार देवबोध नामक भागवतधर्मी आचार्य पाटण गया, तो सिद्धराज राजकवि श्रीपालके साथ उससे मिलने गया। उस समय देवबोधने वहींपर एक श्लोक बनाकर श्रीपालका अपमान किया। तथापि राजाके कहनेसे श्रीपालने उसके साथ काव्य-चर्चा की। देवबोध आचार्यकी विद्वत्ता देखकर राजा प्रसन्न हुआ और उसे एक लाख द्रम्म (रुपये) इनाम दिए। श्रीपाल कविको राजाकी यह बात अच्छी नहीं लगी। उसने देवबोधकी चौकसी की
SR No.010817
Book TitleParshwanath ka Chaturyam Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmanand Kosambi, Shripad Joshi
PublisherDharmanand Smarak Trust
Publication Year1957
Total Pages136
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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