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________________ पार्श्वनाथका चातुर्याम धर्म ‘फल मारकर उसने उसे मार डाला और स्वयं गद्दीपर बैठ गया। इसके पश्चात् वह आमविहार नामक तीर्थमें गया । वहाँ बप्पभट्टिके दो विद्वान् शिष्य थे। उन्होंने भोजका आदर-सत्कार नहीं किया; इससे भोज नाराज़ हो गया और उसने नन्नसूरि और गोविन्दसूरिको बुलवाकर उन्हें गुरुपद दे दिया। इसके बाद उसने अनेक राजाओंको जीत लिया और वह आम राजासे भी अधिक जिनशासनकी उन्नति करने लगा। हेमचन्द्रसूरि हेमचन्द्रसूरिका जन्म धंधुका शहरमें संवत् ११४५ में हुआ। ११५० में दीक्षा दी गई और अध्ययन पूरा होते ही संवत् ११६६ में जैन संघके आचार्य पदपर उनकी नियुक्ति की गई। तब वे खंभातसे पाटण जानेके लिए निकले। उस समय पाटणमें सिद्धराज राज कर रहा था । वह कट्टर शैव था। ( उसका बनाया सहस्रलिंग तालाब रेतसे भर गया था। उसे कुछ वर्ष पहले बड़ौदा सरकारके पुरातत्त्व विभागने खोज निकाला है।) हेमचन्द्रसूरि उस शहरके बाजारमेंसे जा रहे थे कि उधरसे सिद्धराज हाथीपर बैठकर अपने दलबल समेत आता दिखाई दिया । यह देखकर हेमचन्द्र पासकी एक दूकानमें खड़े हो गये और राजाके पास आनेपर उन्होंने राजाकी स्तुतिसे भरा हुआ एक श्लोक कह सुनाया। उसे सुनकर राजा प्रसन्न हुआ और हेमचन्द्रसे बोला, “ आप हर रोज़ दो पहरको आकर मेरा मनोरंजन करते जाइए।" इसके बाद सिद्धराजने मालवा जीता और उस अवसरपर हेमचन्द्रसूरिने उसका स्तोत्र गाया। ___ एक बार अवंतीके भण्डारकी पुस्तकें राजा देख रहा था। उनमें उसे भोज व्याकरण मिला। तब वह हेमचन्द्र सूरिसे बोला, “ हमारे देशमें भी ऐसा व्याकरण चाहिए। आप उसकी रचना करके मेरी
SR No.010817
Book TitleParshwanath ka Chaturyam Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmanand Kosambi, Shripad Joshi
PublisherDharmanand Smarak Trust
Publication Year1957
Total Pages136
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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