SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 63
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बप्पभट्टिसूरि-कथा mmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm एक बार आमराजाने समुद्रपाल राजाके राजगिरि किलेपर धावा बोलं दिया; मगर किला हाथ नहीं आ रहा था। तब बप्पट्टिकी सलाहसे आमके पोते भोजकुमारको, जिसका जन्म अभी अभी हुआ था, वहाँ लाया गया और उसे पालकीमें बिठाकर आगे रखकर हमला बोल दिया. गया, तब किला सर हो गया। आम राजा संवत् ८९० में स्वर्गवासी हुआ और उसका बेटा दुन्दुक गद्दीपर आया। यह दुंदुक एक वेश्याके अधीन होकर अपने बेटे भोजको मार डालना चाहता था। पर भोजका मामा उसे अपने घर पाटलीपुर ले गया। उसके बाद दुंदुकने भोजको वापस ले आनेके लिए बप्पभट्टिको तंग करना शुरू किया। बप्पभट्टि कुछ न कुछ बहाने बनाकर कुछ समय तक तो उसे टालते रहे परंतु अन्तमें दुन्दुकके अत्याग्रहके कारण भोजको ले आनेके लिए वे पाटलीपुर गये। अब वे इस संकटमें फँस गये कि यदि भोजको ले जाते हैं तो दुन्दक उसे मार डालेगा और यदि नहीं ले जाते हैं, तो मुझे आर अन्य जैन साधुओंको सतायेगा। इस संकटसे मुक्ति पानेके लिए उन्होंने २१ दिन अनशन करके देहत्याग कर दिया। उस समय वे ९५ बरसके थे। उनका जन्म संवत ८०० में हुआ, ८०७ में उन्हें दीक्षा मिली, ८११ में आमराजाने आचार्य पद दिया और ८९५ में उनका देहान्त हुआ। * _इसके बाद भोजकुमार अपने मामाके साथ कान्यकुब्ज चला गया। वहाँ राजमहलके दरवाजेपर एक माली फल बेच रहा था। उसने ताड़के तीन फल भोजकुमारको समाप्त किये। उन्हें लेकर वह सीधा राजभवनमें. चला गया और वहाँ सिंहासनपर बैठे हुए अपने पिताकी छातीमें वे तीन. ___ * यहाँपर ११ वर्षकी आयुमें बप्पभट्टिका आचार्य बन जाना असंभव प्रतीत होता है । यह भी नहीं कहा जा सकता कि अन्य बातोंमें कितना सत्य है ।
SR No.010817
Book TitleParshwanath ka Chaturyam Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmanand Kosambi, Shripad Joshi
PublisherDharmanand Smarak Trust
Publication Year1957
Total Pages136
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy