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________________ महावीर स्वामी और मक्खल गोसाल पाश्र्व धर्ममें महावीर स्वामीद्वारा किये परिवर्तन ऊपर दिये गये उत्तराध्ययन सूत्रके अवतरणसे यह स्पष्ट दिखाई देता है कि पार्श्वनाथ के चातुर्याम धर्ममें महावीर स्वामीने दो प्रधान परिवर्तन किये । अर्थात् चातुर्यामके स्थानपर पंचमहात्रतोंको और सचेलकत्वके बजाय अचेलकत्वको स्थान दिया । वहाँपर कहा गया है कि इनमेंसे पहला परिवर्तन तत्कालीन कुटिल जड़-वक्र एवं जड़बुद्धि लोगोंके लिए किया गया था । यह बात संभव नहीं मालूम होती कि पार्श्वनाथके समयके लोग सरल एवं प्रज्ञावान् थे और दो-तीन सौ वर्षोंकी अवधि में वे जड़ एवं वक्रबुद्धि बन गये हों । पार्श्वनाथके अपरिग्रहमें ब्रह्मचर्यका समावेश होता था । परंतु एक बार संप्रदाय बन जाने के बाद शायद अपरिग्रहका यह अर्थ लगाया जाने लगा कि स्त्रीको अपने पास रखकर गृहस्थीका झंझट तो न बढ़ाया जाय, पर किसी समय स्त्री-प्रसंग करनेमें कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए । इसलिए चातुर्याममें ब्रह्मचर्यव्रतका समावेश करना पड़ा । गोतम बोधिसत्त्व द्वारा छह-सात बरसतक की गई कठोर तपश्चर्यासे यह साबित होता है कि महावीर स्वामीके जमाने में तपस्याको बहुत अधिक महत्त्व प्राप्त हो गया था । बुद्धने इस तपश्चर्याका त्याग किया और महावीर स्वामीने उसका अंगीकार किया । उससे जैन धर्ममें अचेलकत्व आ गया । १९ महावीर स्वामी और मक्खलि गोसाल " महावीर स्वामी प्रव्रज्या लेनेके बाद अगले वर्ष मक्खलि गोसाल उनसे मिला। गोसाल उनका शिष्य होना चाहता था । परंतु महावीर स्वामीने उसे स्पष्टतया स्वीकार नहीं किया । फिर भी गोसाल उनके साथ लगभग आठ वर्षतक रहा। उसके बाद उसने छः माहतक तपश्चर्या करके तेजोलेश्या प्राप्त कर ली और फलज्योतिषका अच्छा
SR No.010817
Book TitleParshwanath ka Chaturyam Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmanand Kosambi, Shripad Joshi
PublisherDharmanand Smarak Trust
Publication Year1957
Total Pages136
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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