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________________ पार्श्वनाथका चातुर्याम धर्म उसका समावेश कोसल देशमें होनेके बाद । उन दिनों अच्छे वस्त्रको 'काशिक वस्त्र' और अच्छे चन्दनको ‘काशिक चन्दन' कहा जाता था । इस परसे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि काशीके गणराजा प्रगतिशील थे। ऐसे देशमें पार्श्वका जन्म हुआ हो तो कोई आश्चर्यकी बात नहीं। .. क्या पार्श्वनाथ ऐतिहासिक नहीं थे ? यहाँपर यह सवाल उठ सकता है कि यदि पार्श्वनाथकी कथा काल्पनिक हो तो स्वयं पार्श्व भी काल्पनिक क्यों न होंगे ? इसका उत्तर यह है कि ये सारी दन्तकथाएँ होते हुए भी त्रिपिटक ग्रन्थोंमें जैनोंके सम्बन्धमें और जैनोंके आगमोंमें पार्श्वके सम्बन्धमें जो जानकारी मिलती है उसपरसे यह निष्कर्ष निकलता है कि पार्श्वनाथ ऐतिहासिक पुरुष थे। _ त्रिपिटकमें निर्ग्रन्थोंका उल्लेख अनेक स्थानोंपर हुआ है। उससे ऐसा दिखाई देता है कि निग्रंथ संप्रदाय बुद्धसे बरसों पहले मौजूद था । अंगुत्तर निकायमें यह उल्लेख पाया जाता है, कि वप्प नामका शाक्य निग्रंथोंका श्रावक था। उस सुत्तकी अट्ठकथामें यह कहा गया है कि यह वप्प बुद्धका चाचा था* । अर्थात् यह कहना पड़ता है कि गौतम बुद्धके जन्मसे पहले या उनकी छोटी उम्रमें ही निग्रंथोंका धर्म शाक्य देशमें पहुँच गया था । महावीर स्वामी बुद्धके समकालीन थे। अतः यह मानना उचित होगा कि यह धर्म-प्रचार उन्होंने नहीं बल्कि उनसे पहलेके निर्ग्रथोंने किया था। + एकं समयं भगवा सक्केसु विहरति कपिलवत्थुम्मि । अथ खा वप्पो सक्को निगण्ठ सावको इ। -अंगुत्तर, चतुक्कनिपात, चतुत्थपण्यासक, पाँचवाँ वग्ग ___* वप्पोति दसबलस्सचुल्लपिता ।-अंगुत्तर अट्ठकथा, सयाम संस्करण २।४७४
SR No.010817
Book TitleParshwanath ka Chaturyam Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmanand Kosambi, Shripad Joshi
PublisherDharmanand Smarak Trust
Publication Year1957
Total Pages136
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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