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________________ १२ पार्श्वनाथका चातुर्याम धर्म पार्श्वनाथके शासन देवता कूर्मका वाहन और सिरपर नागफन रखनेवाला, बायीं तरफ़के दो हाथोंमें नकुल एवं साँप धारण करनेवाला, दायीं ओरके दो हाथोंमें फल और साँप धारण करनेवाला श्यामवर्ग चतुर्भज गजानन यक्ष पार्श्वनाथका शासन देवता बना। इसी तरह मुर्गेपर और साँपपर बैठनेवाली, दायीं ओरके दो हाथोंमें पद्म एवं पाश धारण करनेवाली, बायीं ओरके दो हाथोंमें फल एवं अंकुश धारण करनेवाली, स्वर्गवर्णा पद्मावती देवी पार्श्वनाथकी दूसरी शासनदेवी बनी। पार्श्वनाथका निर्वाण यहाँ तक हमने त्रिषष्ठि-शलाका-पुरुषरित्रके नौवें पर्वके दूसरे और तीसरे सौका सारांश बताया। चौथे सर्गमें सागरदत्त एवं बन्धुदत्त नामक दो व्यापारियोंके पूर्वजन्मकी और उसी जन्मकी कथाएँ हैं। उनमेंसे सागरदत्तने पार्श्वनाथसे प्रश्न किया कि जिनरत्न प्रतिमाकी स्थापना कैसे की जाय और पार्श्वनाथकी बताई विधिके अनुसार उस मूर्तिकी स्थापना करके उसने प्रव्रज्या ले ली। बंधुदत्त नागपुरीका रहनेवाला था । उसने और उसकी पत्नी प्रियदर्शनाने पार्श्वनाथसे गृहस्थव्रत ले लिया और नागपुरीके नवनिधिस्वामी राजाने प्रव्रज्या ले ली। इस प्रकार धर्मोपदेश करते हुए घूमते समय पार्श्वनाथके साधुशिष्य १६ हजार, साध्वियाँ ३८ हज़ार, श्रावक १ लाख ६४ हजार और श्राविकाएँ ३ लाख ७७ हज़ार हुई।। अपने निर्वाणको निकट जानकर पार्श्वनाथ सम्मेद पर्वतपर गये आर वहाँपर ३३ साधुओं समेत ३० दिन अनशनव्रत ( उपवास) करनेके बाद श्रावणशुक्ला अष्टमीको विशाखा नक्षत्रमें उन्हें निर्वाणप्राप्ति हुई। वे गृहस्थाश्रममें ३० बरस, और संन्यासाश्रममें ७० बरस रहे।
SR No.010817
Book TitleParshwanath ka Chaturyam Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmanand Kosambi, Shripad Joshi
PublisherDharmanand Smarak Trust
Publication Year1957
Total Pages136
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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