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________________ १० पार्श्वनाथका चातुर्याम धर्म प्रकारका है जो साधुओंके लिए है और दूसरा बारह प्रकारका है जो गृहस्थोंके लिए है। इसमें पाँच अणुव्रत, तीन गुणव्रत और चार शिक्षाव्रत आते हैं। इन व्रतोंके पालनमें (गृहस्थोंसे) अतिचार हो जाय, तो वे पुण्यप्रद नहीं होते। अतः पाँच अणुव्रतोंमें हर एकके पाँच अतिचार वर्म्य किये जायें। रागसे (प्राणियोंको) बाँधना, नाक-कान छेदना, अधिक बोझ लादना, मारपीट करना और भूखे रखना-ये अहिंसा अणुव्रतके पाँच अतिचार वर्य किये जायें। - झूठा उपदेश, बिना सोचे बात करना, गुप्त बातें प्रकट करना, विश्वास रखकर कही गई बात दूसरेको बताना और झूठे दस्तावेज़ तैयार करना-ये सत्य अणुव्रतके पाँच अतिचार वर्ण्य किये जायें। चोरीके लिए अनुमति देना, चोरीका माल लेना, विरुद्धराज्यातिक्रम या विरोवी राजाके राज्यमें जाना, बनावटी माल तैयार करना और नाप-तौलमें बेईमानी करना—ये अस्तेय अणुव्रतके पाँच अतिचार वज्य किये जायें। दिग्विरति, देशविरति और अनर्थदण्डविरति ये तीन गुणव्रत हैं और सामायिकव्रत, प्रोषधव्रत. उपभोग-परिभोग-परिमाणव्रत एवं अतिथिसंविभागवत ये चार शिक्षाव्रत हैं। इन बारहों व्रतोंका स्पष्टीकरण न करके हेमचन्द्राचार्यने केवल उनके अतिचार दिये हैं । उनमेंसे पाँच अणुव्रतोंके अतिचार यहाँ दिये गये हैं। शेष ७ व्रतोंका स्पष्टीकरण तत्त्वार्थागमसूत्रकी सर्वार्थसिद्धि-टीका (अ० ७ सूत्र २१) के आधारपर किया है । हेमचन्द्राचार्यके दिये हुए इन ७ व्रतोंके अतिचार यहाँ इसलिए नहीं दिये गये हैं कि उनसे विवेचन बहुत बढ़ जायगा। . ..
SR No.010817
Book TitleParshwanath ka Chaturyam Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmanand Kosambi, Shripad Joshi
PublisherDharmanand Smarak Trust
Publication Year1957
Total Pages136
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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