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________________ राष्ट्रीयता नहीं चाहिए गया है। इसे हम आपद्धर्म कह सकते हैं । पर यदि यह ऐसा ही बढ़ता जाय तो सद्धर्मका सिंहासन दबोच बैठेगा, इसमें कोई शंका नहीं है। अतः अभीसे इस वर्गसे सावधान रहना चाहिए। ___ इस वर्गके लोगोंसे हमें यह साफ़ कह देना चाहिए कि, " भाइयो, आप चातुर्यामका पूरा भंग करके संपत्ति कमाते हैं; फिर भी हम आपसे केवल इसीलिए दान लेते हैं कि इस देशके जनसाधारणका कल्याण हो और क्रान्तिकी नौबत आये बिना अहिंसाके द्वारा नये समाजका निर्माण किया जा सके । यह आशा रखना व्यर्थ है कि इस नव-निर्माणमें इंग्लैंड-अमेरिकाके धनिकोंकी तरह आप भी सर्वाधिकारी बन बैठेंगे। आपकी हत्या किये बिना आपको आपके परिग्रहसे मुक्त करनेका हमारा प्रयत्न है और आपका कल्याण इसीमें है कि आप इसमें स्वेच्छासे सहयोग दें।" यह प्रचार अभीसे स्पष्ट रूपमें शुरू कर देना चाहिए। राष्ट्रीयता नहीं चाहिए इस प्रचारमें राष्ट्रीयताको नहीं मिलाना चाहिए। इस राष्ट्रीयतासे शुरू-शुरूमें इग्लैंडको लाभ हुआ। पर उसके परिणाम पिछले दो महायुद्धोंमें जो निकले उनसे इग्लैंडका तो लगभग दीवाला ही निकल गया है । और ऐसे चिह्न स्पष्ट दिखाई दे रहे हैं कि इंग्लैंड शीघ्र ही स्पेनका दर्जा हासिल कर लेगा। तो फिर इस राष्ट्रीयतासे इंग्लैंडने क्या पाया ? अनन्त इतिहासमें ' दो दिनोंकी' सामाज्यसत्ता! हमारे लिए यह राष्ट्रीयता प्रारंभसे ही बाधक बनेगी। अंग्रेजोंसे मुकाबला करनेके लिए हम भले ही आज एक हो जायँ; मगर राष्ट्रीयताके कारण यह एकता शीघ्र ही नष्ट हो जायगी। कर्नाटक एवं महाराष्ट्र, आन्ध्र एवं तामिलनाड, बंगाल एवं बिहार तथा अन्य सभी प्रदेशोंमें छोटी-मोटी बातोंपर झगड़े होने लगेंगे और हिंसक तथा परिग्रही लोगोंके हाथमें सत्ता
SR No.010817
Book TitleParshwanath ka Chaturyam Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmanand Kosambi, Shripad Joshi
PublisherDharmanand Smarak Trust
Publication Year1957
Total Pages136
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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