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________________ पार्श्वनाथका चातुर्याम धर्म राजनीतियाँ चल रही हैं वे इस टक्करको टालनेके लिए नहीं बल्कि इसीलिए हैं कि उससे और सब चकनाचूर हो जाय और वे वस्यं बच जायँ । इस टक्करमें केवल इन शक्तियोंका ही कचूमर नहीं निकलेगा, बल्कि हमारे जैसे अनेक असहाय देशोंके भी चकनाचूर हो जानेकी संभावना है। अतः सभीका यह कर्तव्य है कि इस टक्करको टालनेका विचार अभीसे शुरू किया जाए। कहा जाएगा कि हम जैसे दुर्बलोंके सोचविचारसे क्या फायदा ? विचार तो स्वयं अमेरिकनों, अंग्रेजों और बोल्शेविकोंको करना चाहिए। मेरे मतमें इस मुठभेड़का होना या न होना बहुत कुछ हमपर भी निर्भर है। इस मामले में यदि हम तटस्थ रह सकें, तो इस टक्करका वेग बहुत कुछ कम हो जायगा और शायद उसे टाला भी जा सकेगा। . मुख्य इलाज चातुर्यामोंका महात्मा गाँधीने पिछले २५ वर्षों में अहिंसा और सत्यके दो याम व्यवहार्य कर दिखाये हैं । उनको स्वीकार करनेसे हिन्दुस्तानका कोई नुकसान नहीं, बल्कि लाभ ही हुआ है। इन दो यामोंमें अस्तेय एवं अपरिग्रहकी वृद्धि हो जाय तो हिन्दुस्तानका विकास अधिक अच्छा और त्वरित होगा। महात्मा गाँधी और उनके आश्रमवासी अनुयायी अपरिग्रह एवं अस्तेय व्रतका पालन तो करते ही हैं; परंतु सार्वजनिक कार्यके लिए उन्हें सपरिग्रही धनीवर्गपर निर्भर रहना पड़ता है । इस वर्गकी बहुतांश संपत्ति व्यापारी लूटके द्वारा (जिसे वे मुनाफा कहते हैं ) प्राप्त की हुई होती हैं । अतः उन्हें चारों याम पसन्द नहीं हैं । अपनी संपत्तिकी रक्षाके लिए वे बेझिझक हिंसाका प्रयोग करेंगे; और असत्य तो उनके व्यवसायका प्रमुख साधन है। ऐसा होते हुए भी राष्ट्रीय कार्यमें इस वर्गसे सहायता लेना महात्मा गाँवीके लिए आवश्यक हो
SR No.010817
Book TitleParshwanath ka Chaturyam Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmanand Kosambi, Shripad Joshi
PublisherDharmanand Smarak Trust
Publication Year1957
Total Pages136
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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