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________________ पार्श्वनाथका चातुर्याम धर्म पॉलपर अनेक संकट आये; पर उसने ईसाई धर्मका प्रचार करनेका काम नहीं छोड़ा। एक बार उसे यरुशलेमके यहूदी लोग मार डालनेवाले थे, पर वहाँ के रोमन कैप्टनने उसे बचा लिया और रात ही रातमें रोमन गवर्नर के पास भेज दिया । यहूदियोंने उसे अपने कब्जे में लेने की कोशिश की; मगर पॉलने कहा कि “ मैं कैसरसे अपील करूँगा । " अतः उसे जेलमें रखकर बादमें रोम भेजना पड़ा। उसे रोमन जेलमें बेड़ियाँ पहनाकर रखा गया था; फिर भी वह वहाँ धर्मप्रचार करता रहा । रोम पहुँचनेपर वह किराये के मकान में रहता था । वहाँ भी उसने बहुत धर्मप्रचार किया । इस प्रकार सेंट पॉलके प्रयत्नोंसे रोमन साम्राज्य में ईसाई धर्म फैल गया । कॉन्स्टंटीन बादशाहका ईसाई धर्मको प्रश्रय यद्यपि ईसाई धर्मका प्रचार लगातार चल रहा था, तथापि रोमन बादशाहोंकी तरफ से ईसाई लोगों को बहुत यंत्रणाएँ दी गई । अन्तमें कॉन्स्टंटीन बादशाहने इस धर्मको प्रश्रय दिया और तब ये यंत्रणाएँ कम हुई, ईसाई धर्म प्रबल बन गया । कॉन्स्टंटीन बादशाहने सन् ३२५ में ईसाई आचार्यों की एक धर्मसभा करवाई और उस सभा में ईसाई संघका संगठन किया गया । जिस प्रकार अशोकके आश्रयसे बौद्ध संघ परिग्रही बना, उसी प्रकार कॉन्स्टंटीन के आश्रय से ईसाई संघ भी परिग्रही बन गया और उसकी पार्थिव संपत्ति में उन्नति और आध्यात्मिक संपत्तिमें अवनति होती गई। इससे ईसाका बताया हुआ अपरिग्रह दूर रहा, असत्य एवं हिंसाका प्रादुर्भाव हुआ और राजाओंकी लूटमेंसे काफी हिस्सा ईसाई संघको मिलने लगा। अर्थात् पार्श्वनाथके चारों याम ईसाई संघमेंसे नष्ट होते गये। ૭૮
SR No.010817
Book TitleParshwanath ka Chaturyam Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmanand Kosambi, Shripad Joshi
PublisherDharmanand Smarak Trust
Publication Year1957
Total Pages136
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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