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________________ बड़ी खोज राजकुमारीने अबकी बार मुसकराते हुए अपने स्वरमें माधुर्यका भरपूर पुट देकर कहा-'मेरे और तुम सबके लिए मोतियों और रत्नोंसे बढ़कर भी कोई वस्तु है । मैंने तुमसे अभी तक खुलकर चर्चा नहीं की, किन्तु अपने लिए उसीकी खोजमें मैं तुम्हें साथ लेकर निकली हूँ। पार्थिव आभूषणोंअलंकारोंकी प्राप्ति और उन्हींके लिए पारस्परिक स्पर्धामें तुम लोग इतनी अन्धानुकरणशील हो गई हो कि उनसे अधिक मूल्यवान् वस्तुको आँखोंसे देखनेपर भी उसकी ओर तुम्हारा ध्यान नहीं जाता। जिस वस्तुकी मुझे आन्तरिक खोज थी, वह आज मेरी आँखोंके सामने आकर मेरे हृदयमें स्थापित हो चुकी है, यद्यपि उसका बाह्य रूप इस वनके वृक्षोंकी ओटमे कहीं ओझल हो गया है। मेरे प्रति अपने स्नेह और औदार्यके नाते क्या तुम अविलम्ब उसे खोज नहीं निकालोगी? उस खोजके साथ ही सम्भव है वह हार भी तुम्हें वहीं मिल जाय।' राज-बालाओंको अब राजकुमारीका संकेत और अभिप्राय समझते देर न लगी। उन सभीने एक तरुण लकड़हारेको वनमे लकड़ी काटते और फिर उसे बटोरकर एक ओर जाते देखा था। उन्हें ध्यान आया कि निःसंदेह वह संसारका सर्वाधिक सुन्दर युवक था । सूर्यास्तसे पहले ही उन्होंने उस युवकको खोज लिया। उसी वनके अञ्चलमें वह एक कुटिया बनाकर अपने वृद्ध माता-पिताके साथ रहता था । राजकुमारीको अपनी सबसे बड़ी खोजका इष्ट-जन मिल गया। राजकुमारीका मुक्ताहार भी लकड़ियोके गट्टरमें एक लकड़ीमे लिपटा हुआ मिल गया। हारके मोती उसने अपनी संगिनियोंको बाँट दिये । xxx इस राजकुमारी और इसके खोजे हुए प्रियजनकी उपर्युक्त कथा आपके लिए नई हो सकती है, किन्तु उनके नाम आपके सुपूर्व-परिचित हैं । दुनिया
SR No.010816
Book TitleMere Katha Guru ka Kahna Hai Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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