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________________ पहले बाहर, फिर भीतर एक राजाको एक बार अपने महलोंमें सौ नये सेवक नियुक्त करनेकी आवश्यकता हुई। राजाने सारे राज्यमे इस आवश्यकताका विज्ञापन करा दिया और यह भी स्पष्ट कर दिया कि प्रार्थियोंमे किस प्रकारको योग्यताएँ होनी चाहिएं। निश्चित दिन सुबह ही से राजमहलके द्वारपर दस सहस्र प्राथियोंकी भीड़ एकत्र हो गई। राजमहलके सेवकोंका असाधारण वेतन भी तो अत्यधिक आकर्षक था। प्रार्थियोंके निरीक्षणका पूर्व-निश्चित समय आया और महलके भीतरसे निकलकर एक राजपुरुषने सूचना दी कि अभी निरीक्षण-अधिकारीके आनेमें कुछ और बिलम्ब है। दो घंटे बाद वही राजपुरुष फिर बाहर आया और उसने प्रतीक्षा करती हुई भीड़को सूचना दी कि निरीक्षण-अधिकारीके आनेमें अभी कुछ और बिलम्ब है। इसपर एक सहस्र प्रार्थी असंतुष्ट होकर अपने घरोंको लौट गये। दो घटे बाद फिर उसी राजपुरुषने आकर वैसी ही बात कही और उससे खीझकर दो सहस्र प्रार्थी और लौट गये। दो-दो घंटे बाद उस राजपुरुष-द्वारा उसी सूचनाकी पुनरावृत्ति होती रही और सूर्यास्तके पश्चात् राजमहलके द्वारपर केवल सौ प्रार्थी शेष रह गये । अपनी इस संख्याको देखते हुए संभवतः इनमें से प्रत्येकको अब आशा हो गई थी कि वह राज-सेवामें अवश्य ही ले लिया जायगा। किन्तु रातके दो पहर बीतते-बीतते इन्हें भी नींद आने लगी। दिन-भरके भूखे और थके-माँदे ये प्रार्थी महलके द्वारकी भूमिपर लेटकर विश्राम करने लगे और इनकी आँख लग गई। ग्रीष्म ऋतु थी और यह देश धरतीका सबसे अधिक गरम देश था। महलके द्वारपर विरल पत्रोंवाले वृक्षोंकी अपर्याप्त छायामें बैठे हुए,
SR No.010816
Book TitleMere Katha Guru ka Kahna Hai Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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