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________________ नारी वा नारायण १२१ गुरु परम सिद्ध थे । जलके ऊपर सिद्धासनमे अवस्थित होकर उन्होंने कहा -- 'वत्स, जिसके पीछे भागकर तू कुछ पाना चाहता है, वह चाहे नारी हो या नारायण बन्धनके अतिरिक्त तुझे और कुछ नही दे सकता । तेरे द्वारपर आई नारी मुक्त रहती तो वह तेरे लिए नारायणका प्रसाद थी, और द्वारपर आया नारायण यदि तेरे हाथ आ जाता तो वह नारीके वमन से अधिक कुछ न रहता । तेरे स्पर्शका बचाव मैंने तेरे हितके लिए ही किया है।' इतना कह कर गुरु जलके गर्भ में अदृश्य हो गये ।
SR No.010816
Book TitleMere Katha Guru ka Kahna Hai Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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