SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 11
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सुखोंकी दुकान मैने परख लिया कि इस रसायन-द्वारा दुःखोंकी निवृत्ति केवल काल्पनिक और इसलिए कुछ ही समयके लिए होती है और उन टले हुए दुःखोंका प्रभाव कुछ समय बाद ठीक वैसा ही प्रकट होता है जैसा उस रसायनका प्रयोग न करनेपर होता ।। ____ अस्तु, मैं तीसरी बार सुखोंकी दूकानपर गया। दुकानदारकी भलमनसाहतपर मेरा विश्वास बढ़ा ही था। उसने मुझे बताया कि सुख नं० २ या सुभ्रम रसायनका अर्थ ही सुखद भ्रम उत्पन्न करनेवाला रसायन है और उसका दूसरा नाम 'पलायन अवलेह' भी है। अबकी बार उसने मुझे 'सुख नं० ३, कामद यन्त्र' अंकित एक बन्द डिब्बेमें-से खोलकर तांबे जैसी धातुका बना एक गुलाबके आकारका फूल दिखाया और बताया कि इस सुख नं० ३ में से मैं जो भी वस्तु चाहूँगा वह मुझे आकर मिलेगी। इस सुख नं० ३ के मूल्यमें उसने मेरी पूरी थैली, जो मैं उस समय ले गया था, निःसंकोच स्वीकार कर ली। ___सुख नं० ३ के यन्त्र-द्वारा मैने संसारमें जिस वस्तुको भी कामना को वही मुझे प्राप्त हो गई । किन्तु उस प्रकार प्राप्त प्रत्येक वस्तु कुछ समय बाद मेरे लिए नीरस और अनाकर्षक हो जाती थी। उस यन्त्रद्वारा ज्यों-ज्यों मैं एकसे-एक सुन्दर और मूल्यवान् वस्तुओंको प्राप्त करता गया, वे सब अनाकर्षक बनकर मेरे घरमें कचरेके ढेरकी तरह बढ़ती गई । तंग आकर मैने चौथी बार सुखोंकी दूकानकी शरण ली। दुकानवालेने अबकी बार विशेष तपाकके साथ मेरा स्वागत किया। उसने कहा-'सुख नं० १ खरीद ले जानेके बाद कम ही ग्राहक सुख नं० २ खरीदने आते है, और सुख नं० २ खरीदनेके बाद तो बहुत ही कम लोग तीसरे सुखकी खोजमें यहाँ आते हैं। मेरे प्रबन्धकालमे इस दूकानपर चौथी बार आनेवाले तुम्हीं पहले व्यक्ति हो, इसके लिए मैं तुम्हें बधाई देता हूँ। सुख नं० ३ का एक नाम 'कामद-यंत्र' और दूसरा 'रस-हर' यानी हर वस्तुको रस-हीन बनानेवाला यंत्र भी है। जो बस्तु
SR No.010816
Book TitleMere Katha Guru ka Kahna Hai Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy