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________________ कृष्ण-गीता मन्य रह मापेक्ष यों तो क्या इससे हानि । जब निश्चित मापक्षता होती है सुख-खानि ॥१५॥ संशय वहां न रह मके हृदय न डावाँडोल । जहां रहे मापक्षता निश्चित और अलोल ॥१६॥ 'अमुक अपेक्षा मे अमुक दुखकर या सुख-खानि ' मे निश्चय मे मदा होती संशय-हानि ॥१७॥ निश्चय होना चाहिये हो कर्तव्य प्रकाश । कभी अपेक्षामे नही होता निश्चय-नाश ॥१८॥ यदि विवक हो तो मदा निश्चित होता कार्य । यदि विवेक मनमे न हो तो भ्रन है अनिवार्य ॥१९॥ रख विवेक मनमें सदा समझ अहिंमा सत्य । है विवेक के राज्य में अतिदुर्लभ दोगत्य ॥२०॥ सत्यामत्य-स्वरूप है तथ्य अनेक प्रकार । सदमरूप उसी तरह है अतथ्य-परिवार ॥२१॥ (ललितपद) तथ्य चारविध कहा, प्रथम विश्वास-प्रवर्धक भाई । शोधक पापोत्तेजक निंदक इनमें दो सुखदाई ।। पहिले सत्य-स्वरूप और अंतिम दो मिथ्या वाणी । जीवन की लहलही लतापर दोनों तीक्ष्ण कृपाणी ॥२२॥ विश्वास-वर्धक तथ्य जो हो जितना ज्ञात उसे उतना ही ज्ञात बताना । व्यर्थ कल्पनाओं से झूठी बातें नहीं सुनाना ।।
SR No.010814
Book TitleKrushna Gita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1995
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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