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________________ सातवाँ अध्याय [ ४५ सातवाँ अध्याय अजुन (रोला) माधव तुमन सर्व--जाति-समभाव सिग्वाकर । नरनारी के योग्य न्याय्य सम्बन्ध दिग्वाकर ।। जाति -पाँति का भूत भगाया मेरे सिरस । पक्षपात की जड़ उखाड़ दी तुमने फिरसे ॥१॥ नरनार्ग का पक्षपात अब क्या आवेगा । कुल कुटुम्ब का मोह यहां क्यों दिग्वलांवगा। पनपेगा समभाव बनेगा हृदय विरागी । बनकर मैं स्थितिप्रज्ञ बनूंना मच्चा त्यागी ॥२॥ पक्षपात को छोड़ दिया है मैंने माधव । नहीं रहा अब शेष किसी से मुझ मोह लव ।। लेकिन कहदो पाप-पुण्य-समभात्र करूँ क्या । समभावी बन कहो जगतकं प्राण हमें क्या ॥३॥ सब धर्मो में मुख्य अहिंसा धर्म बताया । पर है हिंसा-कांड यहां पर सन्मुग्व आया ।।
SR No.010814
Book TitleKrushna Gita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1995
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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