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________________ २८ । कृष्ण-गीता वर भी निर्वैर--सा होगा यहाँ । त्याग की जड़ता रहेगी अब कहाँ ॥४॥ है दवा अनुपम तुम्हारी हे सखे । युक्तियाँ कल्याणकारी हे मवे ॥ पर तुम्हे है एक कठिनाई यहां रोग ह शतान का भाई यहाँ ।.५।। पा रहा अनुपम तुम्हारा प्यार हूँ। और औषध के लिये तैयार हूँ ॥ पर कहूँ क्या मै कि माहागार हूं । जन्मजन्मो का विकट बीमार हूं ॥६॥ आ रहे सन्देह के चक्कर मुझे । कटुकमा है दूध गुड़ शक्कर मुझे ॥ बढ़ रहा चिन्ता अनल का ताप है । बोलना भी आज बात-प्रलाप है ॥७॥ पर मिला जब वैद्य है तुमसा मुझ । रोग की चिन्ता भला है क्या मुझे ॥ हो परेशानी तुम्हें मैं क्या करूं । क्यो न सब मन्दह में आगे धरूं ॥८॥ जो कही स्थिति-प्रज्ञकी तुमने कथा । वह करेगी दूर जगकी सब व्यथा ॥ मार्ग है अनुपम सुखों का गेह है। किन्तु पदपद पर मुझे सन्देह है ॥९॥
SR No.010814
Book TitleKrushna Gita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1995
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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