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________________ NEDARBGST - समर्पण WC 2065280062605 .. योगेश्वर श्रीकृष्ण के चरणों में, योगेश्वर ! साधारण दुनियाने तुम्हें बहुत कम समझा । इसमें लुम्हारा अपराध तो कैसे कहूँ ? पर दुनिया का भी बहुत कम अपराध है । अपराध है तुम्हारी विचित्रता का । तुम योगी हो या भोगी ? राजा हो या रंक ? ब्राम्हण हो, क्षत्रिय हो, वैश्य हो या शूद्र ! कुछ समझ में नहीं आता, आखिर तुम, पूर्णावतार हो । सब रस और सब कर्म तुम्हारे जीवन में हैं जो तुम्हारे अनुचरों के मनमें प्रतिबिम्बित होते हैं । जब जब निराशाओं ने मुझे घेरा है, कार्य के बोझने दबाया है तब तब तुम्हारी मूर्ति उसी तरह मेरे सामने खड़ी हुई है जैसे अर्जुन के सामने हो गई थी और उससे A. मैंने बहुत कुछ पाया है । अर्जुन को दिव्योपदेश देकर तुमने दुनिया को जो अमर साहित्य दिया था वही अमर 5 साहित्य न जाने कैसे तुमने मुझे दिया और मैंने वह पद्यों में गॅथ डाला । जरा देखो तो कैसा गुंथा है ? तुम्हारा अनुचर बन्धु –दरबारीलाल सत्यभक्त । GUROLAPSEscorts, 2eDEORGEToGOS2005 GEORS
SR No.010814
Book TitleKrushna Gita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1995
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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