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________________ (२०) दर्शन भिन्न क्यों हैं इसी बात को लेकर दर्शन-शास्त्र का उल्लेख हुआ है और दर्शन--शास्त्र के ईश, अनीश, आत्म, अनात्म वादों का धार्मिक उपयोग बताया गया है । ४ गीता युद्ध के समय जो बातचीत हुई थी उसकी रिपोर्ट है । वह बातचीत ग्रन्थ बनगई यह दूसरी बात है पर उसमें विषयवार अध्याय न होना चाहिये । युद्ध के उस अल्प समय में श्रीकृष्ण का काम जल्दी से जल्दी सत्यमार्ग दिखला कर अर्जुन को कर्तव्य-पथ पर खड़ा करना था । 'अब मैं इतना कह चुका इतना और सुनले' इस प्रकार सुना सुना कर अध्याय तैयार करने का वह अवसर नहीं था । इसलिये प्रस्तुत-गीता में हरएक अध्याय का अन्त वार्तालाप के उपसंहार रूप में किया गया है। सिर्फ पहिला अध्याय अर्जुनविषाद पर पूरा हुआ है। बाकी हरएक अध्याय में श्रीकृष्ण चर्चा पूरी कर देते हैं पर अर्जुन कोई न कोई शंका उपस्थित कर बैठते हैं इसलिये श्रीकृष्ण को चर्चा करना पड़ती है और अध्याय बन जाता है । इससे कुछ स्वाभाविकता भी आ गई है। __५-प्रस्तुत गीता में ऐसे विषय भी रक्खे गये हैं जो भगवद्गीता में नहीं हैं। जैसे नर-नारी-समभाव वहाँ संकेत रूप में है तो इस गीता में उसके लिये स्वतन्त्र अध्याय लिखा गया है जो आज कल के लिये ज़रूरी होकर के भी उस अवसर के बिलकुल अनुकूल बना दिया गया है । ज़रा नमूना देखिये: नारी को यदि पुरुष परिग्रह माना तुमने, उसको दासी तुल्य भूलकर जाना तुमने । तो समझो अंधेर मचाना ठाना तुमने,
SR No.010814
Book TitleKrushna Gita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1995
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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