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________________ (१५) नव कृष्ण कहते है:मरने पर पुरुषार्थ भला क्या ? मुर्दे की श्रृंगार कला क्या ? मोक्ष परम पुरुषार्थ यहीं का कर्मयोग-आधार । यही है मोक्ष और संसार ॥ जब अर्जुन अपना दैन्य प्रकट करके कहता है कि छोटी सी यह बुद्धि है, है सब शास्त्र अथाह । अगर थाह लेने चलूं हो जाऊँ गुमराह ।। तब श्रीकृष्ण अभय-दान देते हुए कहते है बुद्धि अगर छोटी रहे तो भी हा न हताश । छोटी सी ही आँग्व में भर जाता आकाश ॥ फिर कहते है--- पाक-शास्त्र जाने नहीं करें स्वाद-प्रत्यक्ष । निपट अपाचक लोग भी स्वाद परीक्षण दक्ष ॥ विषय की गहनता को देखते हुए इतना सुबोध विवेचन करने में श्री सत्यभक्तजी को आश्चर्यजनक सफलता मिली है। जगह जगह उदाहरण और दृष्टान्त इतने 'फिट' दिये गये है कि विषय एकदम हृदयंगम हो जाता है जैसः-- कठिन कर्तव्य है अर्जुन कटिन सत्पन्थ पाना है । विरोधा से भरी दुनिया समन्वय कर दिग्वाना है । अनल की ज्योति है बिजली चमकती जोकि बादलमें । बनाया नीर के घरमें अनलने आशियाना है ॥
SR No.010814
Book TitleKrushna Gita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1995
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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