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________________ (१२) कलाप्रेमी, विनयी, त्यागी, चतुर और समय- दृष्टा थे कि उनको पूर्णावतार कहने में कुछ भी अनौचित्य नहीं है। हिन्दू-धर्म के संस्थापक रूप में अगर श्रीकृष्ण को माना जाय तो भी कोई अत्युक्ति न होगी । निःसन्देह वे इतने पुराने हैं कि उनके उपदेशों का विशेषरूप पाना कठिन है पर कुछ सामान्य बातें अवश्य मिल सकती हैं, जैसे कर्मयोग, दर्शन और धर्मो का समन्वय, सुधारकता आदि । इन्हीं सामान्य बातों के आधार पर उनके नाना विशेषरूप चित्रित किये जा सकते हैं । गीता का नूतन रूप इस जगह यह सब लिखने का प्रयोजन यह है कि सत्यसमाज के संस्थापक ने प्रस्तुत पुस्तक में उस कर्म-योग-संदेश को ऐसे नूतन रूप में प्रतिपादित किया है कि जो उस समय के लिये पूर्ण संगत होने के साथ साथ वर्तमान सामाजिक, धार्मिक और नैतिक समस्याओं के लिये भी सुन्दर हल बन गया है । पाँचवें अध्यायमें जाति-मोहका विरोध करतेहुये कहते हैं: "जब था जाति-भेद जीवन में समता देने वाला। बेकारी की जटिल समस्याएं हर लेने वाला ॥ जब इसके द्वारा धंधे की चिन्ता उड़ जाती थी । तभी श्रुति स्मृति जाति-भेद को हितकर बतलाती थी। इससे अच्छी तरह अर्थ का होता था बटवारा । देता था संतोष सभी को बनकर शांति--सहारा ॥ सुविधा की थी बात वर्ण का था न मनुज अभिमानी। विप्र शूद्र सब एक घाट पीते थे मिल कर पानी ॥ जातियां हमने बनाई कर्म करने के लिये । हैं नहीं ये दूसरों का मान हरने के लिये ॥
SR No.010814
Book TitleKrushna Gita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1995
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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