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________________ १०८ ] श्रीकृष्ण कृष्ण-गीता तेरी शंका है वृथा जगकी ओर निहार । थोड़े से सुख के लिये नाच रहा संसार ||२५|| ज्यों कोल्हू का बैल त्यों दिन भर फिरते लोग । दिनभर जीने के लिये करते तामस योग || २६॥ सुबह लिया पर शाम को फिर है खाली पेट । इतने से सुख के लिये है जग का आखेट ||२७|| जब कणकण सुख के लिये करते नित्य कुकर्म । तब मन भर सुखके लिये क्यों न करेंगे धर्म||२८|| पारिलौकिकी मुक्ति की सारी चिन्ता छोड़ । मिले मुक्ति-सुख इसलिये पाप - जाल दे तोड़ ||२९|| ईश्वर ईश्वर की चिन्ता न कर घटघट मे भगवान | मत्य-ज्ञान-आनन्द-मय जगत्पिता गुणखान ॥ ३०॥ 'पुण्यपाप जो कुछ करो उसका फल अनिवार्य' । इस प्रकार विश्वास हो यह ईश्वर का कार्य ॥ ३१ ॥ जिसको यह विश्वास है मिला उसे भगवान । आस्तिक नास्तिककी यही है सच्ची पहिचान ||३|| ईश्वरवादी हैं बहूत करें नाम का जाप । पर भीतर ईश्वर नहीं वहाँ भरा है पाप ॥३३॥ ईश्वर ईश्वर सब कहे पर न करें विश्वास | यदि ईश्वर-विश्वास हो रहे न जग में त्रास ॥ ३४॥
SR No.010814
Book TitleKrushna Gita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1995
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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