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________________ कृष्ण-गीता कर्तव्य यहां क्या देता है दिखलाई । तृ धर्म-शास्त्र का मर्म समझले भाई ॥१०॥ है क्षणिकवाद ही सत्य जगत चंचल है । या नित्यवाद में युक्ति तर्क का बल है । या कुछ अनित्य कुछ नित्य वस्तुका दल है। यह धर्म विषय में सब विवाद निष्फल है। इसमें किसने क्या आत्मशान्ति है पाई । तृ धर्म-शास्त्र का मर्म समझले भाई ॥११॥ तूने जग परिमित या कि अपरिमित जाना । या ठाना तूने द्वीप-समुद्र बनाना । उनमें फिर कोई मुक्ति-धाम भी माना । फिर अन्य किसीने भिन्नरूप मत ठाना । इन मत-भेदों ने धर्म-कथा क्या गाई । तृ धर्म-शास्त्र का मर्म समझले भाई ॥१२॥ दर्शन खगोल भूगोल गणित पढ़ जाओ । नाना शास्त्रों में अपनी बुद्धि लगाओ । पांडित्य बढ़ाओ कला-प्रेम दिखलाओ । पर धर्मशास्त्र का अंग न उन्हें बनाओ। वह धर्म-शास्त्र जिसने सन्नीति सिखाई । तू धर्म-शास्त्र का मर्म समझले भाई ॥१३॥ अर्जुन-- दोहा दर्शन का यदि धर्म से रहे नहीं सम्बन्ध । ध्येय रहे प्रत्यक्ष क्या धर्म बने तब अन्ध ॥१४॥
SR No.010814
Book TitleKrushna Gita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1995
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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