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________________ ८६] कृष्ण गीता पकहूं केवल मोक्ष को छोडूं सब जंजाल । धर्म जाय धन जाय सब जाये काम कराल ॥३६॥ मिला मोक्ष जब हाथ में तब क्या रहा परोक्ष । चिन्तामणि या कल्पतरु कामधेनु है मोक्ष ॥३७॥ चारों क्यों अनिवार्य हों मोक्ष रहे अनिवार्य । मोक्ष मिला सब सुख मिले हुए पूर्ण सब कार्य ॥३८॥ श्रीकृष्ण---- तेरा कहना सत्य है मोक्ष परम कल्याण । पर न तीन पुरुषार्थ हों तो न मोक्ष का त्राण ॥३९॥ धर्म नहीं धन भी नहीं और नहीं हो काम । निराधार कैस बने मोक्ष परम सुखधाम ॥४०॥ चारों ही का रूप जब तू समझेगा पार्थ । आवश्यक होंगे तुझे चारों ही पुरुषार्थ ॥४१॥ धर्म धर्म अहिंसा सत्यमय प्रेमरूप है धर्म । धर्म नियन्त्रण स्वार्थ पर धर्म विश्वहित-कर्म ॥४२॥ धर्म रहा सब कुछ रहा मिटे सकल दुख द्वंद । तब घर घर में छागया संयम का आनन्द ॥४३॥ मिली अहिंसा भगवती मिला सत्य भगवान । ब्रह्मचर्य निःसंगता मिले अचौर्य महान ॥४४॥ सज्जनता फूली फली दुर्जनता विध्वस्त । मिल कर आये यम नियम पाप हुए सब अस्त ॥४५॥
SR No.010814
Book TitleKrushna Gita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1995
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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