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________________ ग्यारहवाँ अध्याय गीत २३ समझ मत दूर मोक्ष का द्वार । यहीं है मोक्ष और संसार ॥ दुःख और सुख मन की माया । मनने ही संसार बसाया 11 [ ८३ मन को जीता दुनिया जीती हुआ दुखोदधि पार । समझ मत दृर मोक्ष का द्वार । यहीं है मोक्ष और संसार ||२२|| विपदाएँ यदि सिर पर आवें । गर्ज गर्ज कर हमें डरावें 1 मिला शिकार । उन्हें देखकर मन प्रसन्न कर जैसे समझ मत दूर मोक्ष का द्वार । यहीं है मोक्ष और संसार ||२३|| प्रलोभन । लुब्ध बनावें अगर फिर भी हो न सके चंचल मन । हुई पाप की हार 1 दुखके कारण दूर हुए तब समझ मत दूर मोक्ष का द्वार । यहीं है मोक्ष और संसार ||२४|| जिनने विपत्प्रलोभन विपत्प्रलोभन जीत वे ही परम सुखामृत पीते 1 सार / उनका सुख उनके हाथों में यही मोक्ष का समझ मत दूर मोक्ष का द्वार । यहीं है मोक्ष और संसार ||२५|| मरने पर पुरुषार्थ भला क्या । मुर्दे की श्रृंगार कला क्या ॥ मोक्ष परम पुरुषार्थ यहीं है कर्म - योग- आधार 11 समझ मत दूर मोक्ष का द्वार । यहीं है मोक्ष और संसार ||२६||
SR No.010814
Book TitleKrushna Gita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1995
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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