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________________ रूपस्थध्यान का स्वरूप, विधि और फल नख की छुति चमक रही हैं, विष्यपुष्पों के समूह से समवसरण की विशालभूमि भी सचासच भरी हुई है, गर्दन ऊपर उठा कर मृगादि पशुओं के मुण्ड जिनका मधुर उपदेश पान कर रहे हैं; सिंह, हाथी, सर्प, नकुल आदि जन्म से बर वाले बीब अपना र भल कर जिनके पास बैठ गये हैं, ऐसे समवसरण में स्थित सर्व-अतिशयों से युक्त, केवलज्ञान से शोभित परमेष्ठी अरिहंत भगवान् के स्वरूप का अवलंबन ले कर जो ध्यान किया जाता है। वह रूपस्पध्यान कहलाता है। रूपस्थध्यान का दूसरा भेद तीन ग्लोकों द्वारा कहते हैं राग-ष-महामोह-विकाररकलङ्कितम् । शान्तं कान्तं मनोहारि, सर्वलक्षणललितम् ॥८॥ तोथिरपरिजात-योगमुद्रामनोरमम् । अक्णोरमन्दमानन्दनि.स्यन्दं दवदद्भुतम् ॥९॥ जिनेन्द्रप्रतिमारूपम् अपि निर्मलमानसः। निनिमेषद्दशां ध्यायन रूपस्यध्यानवान् भवेत् ॥१०॥ अर्थ- राग-ष-महामोह-अज्ञान आदि विकारों से रहित, शान्त, कान्त, मनोहर आदि समस्त प्रशान्त लक्षणों से युक्त, अन्य धर्मावलम्बियों द्वारा अज्ञात योग-ध्यानमुद्रा को धारण करने से मनोरम तथा आंखों से प्रबल अदभुत मानन्द सर रहा है, ऐसी स्थिरता से युक्त श्रीजिनेश्वरदेव की प्रतिमा के रूप का निर्मल चित्त से आंख बन्द किए बिना स्थिर निगाह से ध्यान करने वाला योगी रूपस्यध्यानी कहलाता है। फिर योगो चाभ्यासयोगेन, तन्मयत्वमुपागतः । सर्वज्ञीभूतमात्मानम् अवलोकयति स्फुटम् ॥१२॥ सर्वशो भगवान् योऽयम्, अहमेवास्ति स ध्रुवम् । एवं तन्मयतां यातः, सर्ववेदीति मन्यते ॥१२॥ अर्थ-रूपस्थध्यान का अभ्यास करने से तन्मयता-प्राप्त योगी अपने आप को स्पष्ट रूप से सर्वश के समान देखने लगता है। जो सर्वज्ञ भगवान हैं, निस्सन्देह वही मैं हूं। इस प्रकार सर्व-भगवान में तन्मयता हो जाने से, वह योगी सर्वज्ञ माना जाता है। वह किस तरह ? उसे कहते हैं वीतरागो विमुच्येत, वीतरागं विचिन्तयन् । रागिणं तु समालम्ब्य, रागी स्यात् क्षोभणादित् ॥१३॥ अर्थ-श्री वीतरागदेव का ध्यान करने वाला स्वयं वीतराग होकर को याबासनामों से मुक्त हो जाता है । इसके विपरीत रागी देवों का मालम्बन लेने वाला या ध्यान करने वाला काम, क्रोध, हर्ष, विषार, राग-पादि दोष प्राप्त करके स्वयं सरागी बन जाता है। कहा भी है
SR No.010813
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmavijay
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year1975
Total Pages635
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size48 MB
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