SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 567
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५५१ मंत्र द्वारा छायादर्शन या अंगदर्शन-अदर्शन के आधार पर मृत्युज्ञान अनया विण्याष्टाप्रशतवारं विलोचने । स्वच्छायां चाभिमन्न्याकं, पृष्ठे कृत्वाऽरुणोदये ॥२१॥ परच्छायां परकृते, स्वच्छायां स्वकृते पुनः । सम्यक्तत्कृतपूजः सन्न पयक्तो विलोकयेत् ॥२१९॥ अर्थ " जुसः .. मृत्युजयाय ॐ वज्रपाणिने शूलपाणिने हर हर बह वह स्वरूपं दर्शकहूं फट् फट्" इस विद्या से १०८ बार अपने दोनों नेत्रों और छाया को मन्त्रित करके सूर्योदय के समय सूर्य को ओर पीठ करके पश्चिम में मुख रख कर अच्छी तरह पूजा करके उपयोगपूर्वक, दूसरे के लिए दूसरे को छाया और अपने लिए अपनो छाया देखनी चाहिए। संपूर्णा यदि पश्येत् तामावर्ष न मृतिस्तदा । क्रम-जंधा-जान्वभावे, त्रि- येकाब्बतिः पुनः ॥२२०॥ अरोरभावे दशभिः मासनश्येत् कटेः पुनः । अष्टभिर्नवभिर्वाऽपि दुन्दाभावे तु पंचषैः ।२२१॥ ग्रीवाऽभावे चतुस्त्रिद्धयेकमासम्रियते पुनः । कक्षाभावे तु पक्षण, दशाहेन भुजक्षये ॥२२२। दिनः स्कन्धक्षयेऽष्टाभिः चतुर्याम्यां तु हृत्क्षये । शीर्षाभावे तु यामाभ्यां, सर्वाभावे तु तत्क्षणात् ॥२२३।। अर्थ-यदि पूरी छाया दिखाई दे तो एक वर्ष तक मृत्यु नहीं होगी, पैर जंघा और घुटना न दिखाई देने पर क्रमशः तीन, दो और एक वष में मृत्यु होती है । ऊरू-पडलो) न दिखाई दे तो दस महीने में, कमर न दिखाई दे तो आठ-नौ महीने में और पेट न दिखाई दे तो पांच-छह महीने में मृत्यु होती है। यदि गर्दन न दिखाई दे तो चार तीन, दो या एक महीने में मृत्यु होती है। यदि बगल न दिखाई दे तो पन्द्रह दिन में, और मुजा न दिखाई दे तो इस दिन में मृत्यु होती है। यदि कंधा न दिखाई दे तो आठ दिन में, हदय न दिखाई दे तो चार प्रहर में मस्तक न दिखाई दे तो दो प्रहर में और शरीर सर्वथा दिखाई न दे तो तत्काल हो मृत्यु होती है। अब कालज्ञान के उपायों का उपसहार करते हैं - एवमाध्यात्मिकं कालं, विनिश्चेतुं प्रसंगतः । बाह्यस्यापि हि कालस्य निर्णयः परिभाषितः ॥२२४॥ ___ अर्थ-इस प्रकार प्राणायाम के अभ्यासकप उपाय से आध्यात्मिक काल ज्ञान का निर्णय बताते हुए प्रसंगवश बाह्य निमित्तों से भी काल का निर्णय बताया गया है। अब जय-पराजय के ज्ञान का उपाय कहते हैं
SR No.010813
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmavijay
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year1975
Total Pages635
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size48 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy