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________________ ५३६ योगशास्त्र : पंचम प्रकाश अध्यात्मविपर्यासः, संभवेद् व्याधितोऽपि हि । तनिश्चयाय बध्नामि, बाह्य कालस्य लक्षणम् ॥११॥ ___ अर्थ--किसी समय व्याधि-(रोग) उत्पन्न होने के कारण भी शरीर-सम्बन्धी वायु उलट-पलट- विपरीत) हो जाता है । इसलिए काल-ज्ञान का निश्चय करने के लिए काल के बाह्य लक्षणों का वर्णन किया जाता है। नेत्र-श्रोत्र-शिरोभेदात, स च त्रिविधलक्षणः । निरीक्ष्यः सूर्यमाश्रित्य, यथेष्टमपरः पुनः ॥११६॥ अर्थ- नेत्र, कान और मस्तक के भेद से काल तीन प्रकार का माना गया है। यह सूर्य को अपेक्षा से बाह्यकाल का लमण है, और इससे अतिरिक्त बाह्यलक्षण अपनी इच्छा से देखे जाते हैं। इसमे सूर्य का अवलम्बन लेने की आवश्यकता नहीं है। अब इसमें नेत्र-लक्षण कहते हैं वामे तत्क्षणे पचं, षोडशच्छदमैन्दवम् । जानीयाद् भानवीयं तु, दक्षिणे द्वादशच्छदम् ॥१२०॥ अर्थ-बाएं नेत्र में सोलह पखड़ी वाला चन्द्रविकासी कमल है और दाहिने नेत्र में बारह पंखुड़ी वाला सूर्यविकासी कमल है। ऐसा सर्वप्रथम परिज्ञान प्राप्त करना चाहिए। खद्योता तिवर्णानि, चत्वारिच्छदनानि तु । प्रत्येकं तत्र दृश्यानि, स्वांगुलीविनिपीडनात् ॥१२१॥ अर्थ-गुरु के उपदेश के अनुसार अपनी अंगुली से आंख के विशिष्ट भाग को दबाने पर उसमें प्रत्येक कमल को चार पंखाड़याँ जुगुन की तरह चमकती हुई दिखाई देती हैं। सोमाधो ध्र लताऽपाङग-घ्राणान्तिकदलेषु तु । बले नष्टे क्रमान्मृत्युः, षट-त्रि-युग्मैकमासतः । १२२॥ अर्थ-चन्द्र-सम्बन्धी कमल में नोचे को चार पंखुड़ियां दिखाई न दे तो छह महीने में मृत्यु होती है, भू कुटि के समीप को पंखुड़ी दिखाई न दे तो तीन महीने में, मांस के कोने को पंबड़ी न दिखाई दे तो दो महीने में और नाक के पास को पंखुड़ी नहीं दिखाई दे तो एक महीने में मृत्यु होती है । अयमेव क्रमः पये, भानवोये यदा भवेत् । दश-पंच-त्रि-द्विदिनः, क्रमान्मृत्युस्तदा भवेत् ॥१२३॥ ___ अर्थ-इसी क्रमानुसार सूर्यसम्बन्धी कमल की पंखुड़ियां दिखाई नहीं देने पर क्रमशः बस, पांच, तीन और दो दिन में मृत्यु होती है । तथा एतान्यपीड्यमानानि, योरपि हि पायोः । बलानि यदि वीक्षेत मृत्युदिनशतात् तदा ॥१२४॥
SR No.010813
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmavijay
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year1975
Total Pages635
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size48 MB
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