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________________ सूर्यनाड़ी में वायुसंचार से कालनिर्णय ५३५ अर्थ-यदि चौबीस दिन तक वायु एक हो नाड़ी में बहता रहे तो १४४ दिनों में से चार षट्क कम अर्थात् १४४- २४= 2.0 दिन बीतने पर मृत्यु हो जाती है। पंचविंशत्यहं चैवं, वायौ मासत्रये मृतिः। मासद्वये पुनर्मृत्युः, षड्विंशतिदिनानुगे ॥११२॥ अर्थ-पच्चीस दिन तक वायु चलता है ता १२० दिनों में से पांच षट्क=३० दिन कम ६० दिन-(तीन महीने) में और छब्बास दिन तक वायु चलता रहे तो दो महीने में मृत्यु होती है । तथा सप्तविंशत्यह वहेत् नाशो मासेन जायते । मासार्धन पुनर्मुत्युरष्टाविंशत्यहानुगे ॥११३॥ अर्थ- इसी तरह सत्ताईस दिन तक वायु चलता रहे ता एक महीने में और अठाईस दिन तक चलता रहे तो पन्द्रह दिन में ही मृत्यु होती है । तथा एकोनत्रिशदहगे मृतिः स्याद्दशमेऽहनि । विशद्दिनचरे तु स्यात् पंचत्वं पंचमेदिने ॥११४॥ अर्थ- यदि उनतीस दिन तक ही नाड़ी में वायु चलता रहे तो दस दिन में और तीस दिन तक चलता रहे तो पाँच दिन मृत्यु होती है । तथा एकत्रिंशदहचरे, वायो मृत्युदिनत्रये । द्वितीयदिवसे नाशो द्वात्रिंशदहवाहिनि ॥११॥ अर्थ-इसी प्रकार इकत्तीस दिन तक दायु चले तो तीन दिन में और बत्तीस दिन तक चले तो दो दिन में मृत्यु होती है। इस प्रकार सूर्यनाड़ी के चार का उपरहार करवं चन्द्रनाड़ी के चार को कहते हैं वर्यास्त्रशदहचरे त्वेकाहनापि पंचता। एवं यदोन्दुनाड्यां स्यातदा व्याध्यादिकं दिशेत् ॥११६॥ अर्थ-इसी प्रकार तैतीस दिन तक सूर्यनाड़ी में पवन चलता रहे तो एक ही दिन में मृत्यु हो जाती है। उसी प्रकार यदि चन्द्रनाड़ो में बन चलता रहे तो उसका फल मृत्यु नहीं है, परन्तु उतने ही काल में व्याधि, मिना, महान भय, स्वदेश का त्याग, धनपुत्रावि का नाश, राज्य का विनाश, दुष्काल आदि होता है। उपसंहार करते हैं . अध्यात्मं वायुमाश्रित्य, प्रत्येक सूर्यसोमयोः । एवमभ्यासयोगेन, जानीयात्, कालानर्णम् ॥११७॥ अर्थ-इस प्रकार शरीर के अन्दर रहे हुए वायु के आश्रित सूर्य और चन्द्रनाड़ी का अभ्यास करके काल का निर्णय जानना चाहिए। बाह्य काल-लक्षण कहते हैं
SR No.010813
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmavijay
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year1975
Total Pages635
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size48 MB
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