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________________ दूसरे (पोष्णकालिक) तरीके से वायु के निमित्त से मृत्यु की जानकारी चलता रहे तो उस वर्ष के उतने ही विभाग करके दिनों के अनुसार वर्ष के उतने ही विभाग कम कर देने चाहिए । जैसे कि मार्गशीर्ष महीने के प्रारम्भ में पांच दिन तक एक ही नाड़ी में वायु चले तो अठारह वर्षों में मरण कहा है, यदि उस मास में पांच के बदले चार दिन तक एक ही नाड़ी में पवन चलता रहे तो अठारह वर्ष के पांचवें भाग के, अर्थात तीन वर्ष सात महीने और छह दिन के कम करने पर चौदह वर्ष चार मास और चौबीस दिन में मृत्यु होनः फलित होता है। इसी प्रकार तीन, दो दिन वायु चलता रहे इसी हिसाब से समझ लेना, और शरद् आदि के महीने में भी यही नियम समझना चाहिए। अब दूसरे उपाय से वायु के निमित्त से होने वाला कालज्ञान बताते है - अथेदानी प्रवक्ष्यामि, कंचित् कालस्य निर्णयम् । सूर्यमार्ग समाश्रित्य, स च पौष्णेऽवगम्यते ॥६॥ अथ- अब मैं कुछ कालज्ञान का निर्णय बताऊंगा, वह काल-ज्ञान सूर्यमार्ग को आश्रित करके पौष्णकाल में जाना जाता है। अब पौष्णकाल का स्वरूप कहते हैं जन्मऋक्षगते चन्द्र, समसप्तगते रवौ । पौष्णनामा भवेत् कालो, मृत्यु-निर्णय-कारणम् ॥७॥ __ अर्थ - जन्म नक्षत्र में चन्द्रमा हो और अपनी राशि से सातवीं राशि में सूर्य हो तथा चन्द्रमा ने जितनी जन्म-राशि भोगा हो, उतनी ही सूर्य ने सातवों राशि भोगी हो, तब 'पोष्ण' नामक काल कहलाता है । इस पौष्णकाल में मृत्यु का निर्णय किया जा सकता है। पौष्णकाल में सूर्यनाड़ी में वायु चले तो उसके द्वारा कालज्ञान बताते हैं दिनाध दिनमेकं च, यदा सूर्ये मरुद् वहन् । चतुर्दशे द्वादशेऽब्दे, मृत्यवे भवति ऋमात् ॥८॥ अर्थ उस पौष्णकाल में यदि आधे दिन तक सूर्यनाड़ी में पवन चलता रहे, तो चौदहवें वर्ष में मृत्यु होगी, दि पूरे दिन पवन चले तो बारहवें वर्ष में मृत्यु होती है। तथैव च वहन् वायु अहोरात्रं द यहं व्यम् । दशमाष्टभषष्ठान्देष्वन्ताय भवति क्रमात् ॥८९॥ अर्थ- उसी तरह पौष्णकाल में एक अहोरात्रि, दो या तीन दिन तक सूर्यनाड़ी में पवन चलता रहे तो क्रमशः दसवें वर्ष, आठवें वर्ष और छठे वर्ष मृत्यु होती है। वहन दिनानि चत्वारि, तुर्येऽन्दे मृत्यवे मरुत् । साशोत्यहःसहस्र तु पञ्चाहानि वहन् पुनः ॥१०॥ अर्थ- उसी प्रकार से पोष्णकाल में चार दिन तक सूर्यनाड़ी में वायु चलता रहे तो चौथे वर्ष में और पांच दिन तक चलता रहे तो तीन वर्ष में अर्थात् एक हजार अस्मी दिन में मत्यु होती है।
SR No.010813
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmavijay
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year1975
Total Pages635
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size48 MB
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