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________________ आनन्दधावक की अन्तिम धर्मक्रिया अन्तक्रिया स्वीकार की थी। इसी प्रकार आराधना करता हुआ आनन्दधावक की भांति समाधिमरण स्वीकार करे | आनन्दश्रावक की सम्प्रदायपरम्परागम्य कथा इस प्रकार है ४२७ आनन्दधावक की अन्तिम धर्मक्रिया उन दिनों वाणिज्यक अन्य नगरों से बढ़-चढ़ कर ऋद्धि-समृद्धियुक्त प्रसिद्ध नगर था। वहां प्रजा का विधिपूर्वक पालक, पितातुल्य जितशत्रु नामक विख्यात राजा था। उस नगर में अपने दर्शन से दूसरों की आंखों को आनन्द देने वाला, धरती पर मानो दूसरा चन्द्र जाया हो, ऐसा आनन्द नाम का गृहपति रहता था। जैसे रोहिणी चन्द्र की पत्नी मानी जाती है, वैसे ही रूपलावण्य से मनोहर शिवानंदा नाम की उसकी धर्मपत्नी थी। उसके पास जमीन में निषानरूप में गाड़ी हुई, गुहसामग्री में लगी हुई और व्यापार में लगी हुई चार-चार करोड़ स्वर्णमुद्राएं थीं तथा गायों के चार बड़े गोकुल थे। उस नगर के वायव्य कोण में कोल्लाक नामक उपनगर में आनन्द के बहुत सगे-सम्बन्धी रहते थे। उस समय भूमंडल पर विचरण करते हुए सिद्धार्थनदन, श्रीवर्धमानस्वामी उस नगर के छ तिपलाश नामक उद्यान में पधारे । जितशत्रु राजा ने प्रभु का आगमन सुना तो वह भी परिवार सहित शीघ्र प्रभु वंदनार्थ गया। आनन्द भी पैदल चल कर अनेक मनुष्यों को साथ ले कर प्रभु के चरण कमलों में पहुंचा और उनकी अमृतवर्षिणी धर्मदेशना सुन कर अपने काम पवित्र किये। फिर प्रभु के चरणों में नमस्कार कर महामना आनन्द ने प्रभु से बारह व्रतरूप गृहस्थधर्म अंगीकार किया । अपनी शिवानंदा स्त्री को छोड़ कर अन्य सब स्त्रियों का त्याग किया । निधान, प्रविस्तर और व्यापार में लगी हुई चार-चार करोड़ स्वर्णमुद्राओं को छोड़ कर अन्य सम्पत्ति का त्याग किया। चार गोकुल के उपरांत गोकुल का तथा पांच सौ हल से जितनी खेती हो, उससे अधिक सेती का त्याग किया। दिग्यात्रा अर्थात् प्रत्येक दिशाओं में व्यापारार्थ जाने के लिये चार सवारी गाड़ियों के अलावा अन्य यानों का त्याग किया। अंग पोंछने के लिए सुगन्धित काषाय वस्त्र ( तौलिया) के अलावा अन्य वस्त्रों का भी त्याग किया। हरी मुलहठी के दतीन के सिवाय अन्य दतौनों का तथा क्षीर आमलक के सिवाय अन्य फलों का त्याग किया। सहस्रपाक और शतपाक के अतिरिक्त तेलों की मालिश का त्याग किया, सुगन्धित विलेपन- योग्य पदार्थ से अतिरिक्त विलेपन का त्याग किया। स्नान करने के लिए आठ घड़े पानी से अधिक इस्तेमाल करने का त्याग किया। पहनने के लिए एक सूती वस्त्र के जोड़े से अधिक वस्त्र का त्याग किया; चन्दन, अगुरु और केसर के लेप के सिवाय अन्य लेपों का त्याग किया। मालतीपुष्प की माला और कमल के सिवाय फूलों का त्याग किया। कर्ण आभूषण तथा मुद्रिका के अलावा समस्त आभूषणों का त्याग किया। दशांग धूप व अगर के धूप के अलावा अन्य धूपों का भी त्याग किया। घेवर और पूए के अलावा अन्य मिठाइयों का त्याग, काष्ठ से तैयार की हुई पेय (राब) एवं कलमी चावल के अलावा ओदन का त्याग किया। उड़द, मूंग, मटर के अलावा, सूपों (दालों) का त्याग, शरदऋतु में तैयार हुए, गाय के घी के अलावा अन्य घी का त्याग, स्वस्तिक, मण्डूकी, पालक से सिवाय और भाजी का त्याग, घी-तेल से छोंक कर तैयार की हुई खट्टी दाल (कढ़ी) के सिवाय दाल का तथा वर्षा के जल के सिवाय अन्य जल का और पांच सुगन्धित ताम्बूल के अतिरिक्त मुखवास का त्याग किया। इसके बाद आनन्द भगवान् को वन्दना करके घर आया। उसने स्वीकृत गृहस्थ धर्म की विधि शिवानन्दा को सहर्ष सुनाई। उसे सुन कर स्वकल्याणार्थं गृहस्थधर्म स्वीकार करने की अभिलाषिणी शिवानन्दा भी रथ में बैठ कर उसी समय भगवाद के चरणों में पहुंची और तीन जगत् के गुरु को वंदन
SR No.010813
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmavijay
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year1975
Total Pages635
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size48 MB
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