SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 437
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्रावक की ग्यारह प्रतिमाएं ४२१ इत्योकी चर्यामप्रमत्तः समाचरन् । यथाव. वृत्तस्थो गृहस्थोऽपि विशुद्धयति ।.१४७॥ अर्थ- इस प्रकार पूरे एक दिन और रात को श्रावकचर्या का अप्रमत्तभाव से पालन करता हुआ भो जो श्रावक, धावक को शास्त्रोक्त ग्यारह प्रतिमारूप सवत को मविधि आराधना करता है, वह गृहस्थ (साधु न) होने पर भी पापों का क्षय करके विशुद्ध हो जाता है। वह प्रतिमा कौन-सी है ; जिसकी माधना करने पर गृहम्थ श्रावक भी विशुद्ध हो जाता है ? इसे कहते हैं श्रावक को ग्यारह प्रतिमाएं प्रतिमा का अर्थ है-विशिष्ट साधना की प्रतिज्ञा, जिममें श्रावक सकल्पपूर्वक अपने स्वीकृत यम-नियमों का दृढ़ता से पालन करता है। ये प्रतिमाएं श्रावक के लिए ग्यारह है । (१) दर्शन-प्रतिमा -शंकादि दोषरहित, प्रशमादि लक्षणों से युक्त, स्थैर्यादि भूपणो म भूपित, माक्षमार्ग के महल की नींव के समान मम्यग्दर्शन का ; भय, लोभ, लज्जादि, विघ्नो ग रहित निरनिचार विशुद्धरूप गे लगातार एक मास तक पालन करना । (२) व्रत-प्रतिमा-पूर्वप्रतिमा के पालन के सहित बारह व्रतों का दो मास तक लगातार निरतिचार एवं अविराधितरूप से पालन करना । ।.) सामायिक-प्रतिमा--पूर्वप्रतिमाओं की साधना के सहित दोनों समय अप्रमत्तरूप मे २ दोपो से रहित शुद्ध मामायिक लगातार तीन महीने तक करना । (४) पौषध-प्रतिमा-पूर्वप्रतिमाओ के अनुष्ठानमहित निरतिचाररूप से ४ महीने तक प्रत्येक चतुष्पर्वी पर पोषध का पालन करना । (५) कायोत्सर्ग-प्रतिमा -पूर्वोक्त चार प्रतिमाओं का पालन करते हुए पांच महीने तक प्रत्येक चतुष्पर्बी में घर के अंदर, घर के द्वार पर अथवा चौक में परिषहउपसर्ग में सारी रातभर चलायमान हुए बिना काया के व्युत्सर्गरूप में कायोत्मर्ग करना। इस प्रकार उत्तरउत्तर की प्रतिमा में पूर्व-पूर्व प्रतिमाओं का अनुष्ठान निरतिचार पालन करना और प्रतिमा के अनुसार कालमर्यादा उतने ही महीने समझना । (:) ब्रह्मचर्य-प्रतिमा -- पूर्वप्रतिमाओं के अनुष्ठानमहित छह महीने तक त्रिकरण-योग से निरतिचार ब्रह्मचर्य का पालन करना । सचित्तवन-प्रतिमा - नौ महीने तक सचित्तपदार्थ सेवन का त्याग करना । (८) आरम्भवजनप्रतिमा --आठ महीने तक स्वयं आरम्भ करने का त्याग करना । (९) प्रष्य-वर्जनप्रतिमा–नौ महीने तक दूसरे से भी आरम्भ कराने का त्याग करना। (१०) उदिष्टवर्जनप्रतिमा-दस महीने तक अपने लिए तैयार किया हुआ आहार भी खाने का त्याग करना । (११) बमणभूत प्रतिमा ग्यारह महीने तक स्वजन आदि का मग छोड़ कर रजोहरण, पात्र आदि साधुवेश ले कर साधु की तरह चर्या करे। बालों का लोच करे या खुरमु डन करे । अपने गोकुल, उपाश्रय आदि स्वतंत्र स्थान में रह कर मिक्षाचरी करते हुए माधना करे । भिक्षा के लिए धरों में जाकर "प्रतिमाप्रतिपन्नाय श्रमणोपासकाय भिक्षां बत्त अर्थात् 'प्रतिमावारी श्रमणोपासक को भिक्षा दो; इस प्रकार बोल कर आहार ग्रहण करे । आहारदाता को 'धर्मलाम'- शब्द का उच्चारण किये बिना सुसाधु के सहश सुन्दर आचारों का पालन करे । इन्हीं ११ प्रतिमाओं का लक्षण संक्षेप में इस प्रकार बताया गया है-दर्शनप्रतिमा - वह है जिसमें सम्यक्त्वधारी आत्मा का चित मिथ्यात्व का क्षयोपशम होने से शास्त्रविशुद्ध व दुराग्रहरूपी कलक से रहित होता है । निरतिचार अणुव्रत आदि बारह व्रतों का पालन करना, दूसरी बत-प्रतिमा है । सामायिक का शुद्धरूप से पालन करना, तीसरी सामायिक प्रतिमा है । अष्टमी,
SR No.010813
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmavijay
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year1975
Total Pages635
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size48 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy