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________________ स्त्री के अंग का वास्तविक स्वरूप तथा उसका घृणित शरीर मुनि को वाचना दी। इस प्रकार स्थूलभद्र महामुनि समस्त पूर्वो को धारण करने वाले हुए। बाद में आचार्यपद प्राप्त कर उन्होने भविष्य के कल्याण के लिए जीवों को प्रतिबोध दिया । स्त्री-सम्बन्ध से निवृत्ति प्राप्त कर समाधिभाव में लीन बने श्रीस्थूलभद्रमुनि क्रमशः देवलोक में गये। इस प्रकार उत्तम साधुवर्ग एवं बुद्धिमान भव्य-आत्माए' सर्वप्रकार में संसारिकसुखो के त्यागरूप विरति की भावनाओं का चिन्तन करे । इस प्रकार स्थूलभद्रमुनि का मंक्षिप्त जीवनवृत्तान्त पूर्ण हुआ। अब स्त्रियों के अंगों का वास्तविक स्वरूप प्रस्तुत करते हैं यकृत कन्मल-श्लेष्म-मज्जास्थिपरिपूरिताः । स्नायुस्यूता बहिरम्याः स्त्रियश्चर्मप्रसेविकाः ॥३२॥ अर्थ-जैसे जिगर का टुकड़ा, विष्ठा, दांत, नाक, कान व जीम का मेल, श्लेष्म, मज्जा, वीर्य, रुधिर, हाड़ आदि के टुकड़े भर कर चमड़े के तार से सिली हई मशक बाहर से सुन्दर दिखाई देती है, वैसे ही स्त्रियों का शरीर सिर्फ बाहर से रमणीय लगता है, उसके अंदर तो जिगर, मांस, विष्ठा, मल, श्लेष्म, कफ, मज्जा, चर्बी, खून और हड्डियां आदि भरे हैं, केवल ऊपर चमड़ा मढ़ा हुआ है। बहिरविपर्यासः स्त्रीशरीरस्य चेद भवेत । तस्यैव कामुकः कुर्याद् गृद्ध-गोमायु-गोपनम् ॥१३॥ अर्थ-यदि स्त्री के शरीर को उलट-पलट दिया जाय अर्थात् भीतरी माग को बाहर और बाहर के भाग को भीतर कर दिया जाय ; तो कामी पुरुष को दिन-रात गिद्धों, सियारों आदि से उसकी रक्षा के लिए पहरा बिठाना पड़े। खाने के पदार्थ मांस आदि देख कर दिन में गिद्ध और रात को सियार खाने के लिए आते हैं। कामुक आदमी उन्हें हटाते-हटाते हो हैरान हो जायेगा । उस घिनौने शरीर के साथ सम्भोग करने का अवसर ही नहीं मिलेगा। स्त्री स्टेणाएं चेत्कामो, जगदेजिगीषति । तुच्छपिच्छमयं शस्त्रं किं नादत्ते स मूढधीः?॥१३४॥ अर्थ-यदि मूढ़मति कामदेव स्त्री-शराररूपी गदे शस्त्र से सारे जगत को जोतना चाहता है तो फिर वह पिच्छरूप तुच्छशस्त्र को क्यों नहीं ग्रहण करता? व्याख्या-यदि कामदेव घिनौने स्त्री-शरीररूपी शस्त्र से तीन जगत् को जीतना चाहता है तो फिर मृदबुद्धि वाले कौए आदि के पख के रूप में तुच्छ शस्त्र क्यो नहीं ग्रहण कर लेता? कहने का तात्पर्य यह है कि यदि कामदेव असार एवं श्लेष्म, कफ आदि तथा रस, रक्त, मांस, चर्बी हड्डी, मज्जा, शुक्र आदि गंदे पदार्थों से भरे हुए और कठिनाई से प्राप्त होने वाले स्त्रीरूपी शस्त्र से सारे संसार को नमा कर जीतने की अभिलाषा करता है तो फिर अनायाम सुनम और अपवित्रता से रहित कौए आदि के पख को ले कर अपना हथियार बना लेना। हो न हो, वह मूर्ख इस बात को भूल ही गया है। लोकप्रचलित कहावत है कि 'अपने घर के आंगन में पैदा हुए आक के पेड़ में मधु मिल जाय तो कोन ऐमा मूर्ख होगा जो पहाड पर चढ़ने का परिश्रम करेगा ? अन याम ही इष्ट पदार्थ की सिद्धि हो जाय तो कोई भी विद्वान प्रयत्न नहीं करता । तथा नींद खुल जाने पर इस प्रकार चिन्तन करे
SR No.010813
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmavijay
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year1975
Total Pages635
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size48 MB
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